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अब देश की जनता हाथ मलती रह जाएगी, क्योंकि काला धन तो वापस अब नहीं आने वाला है. अब यह भी पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन-कौन से कर्णधार और वर्तमान सरकार के पिर्य हैं, जिन्होंने देश का पैसा लूट कर अपने स्विस बैंकों के खातो में जमा किया है. भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड की सरकार के साथ मिलकर ये एक शर्मनाक और देश विरोधी कारनामा किया है, लेकिन देश में इसकी चर्चा तक नहीं है? यह भी एक राज़ है कि, काले धन के मुद्दे पर अब तक भारत सरकार यह कहती आ रही थी कि, स्विट्जरलैंड के क़ानून की वजह से हमें इन खातों के बारे में जानकारी नहीं मिल रही है. तो भारत सरकार को यह क़रार करना चाहिए था कि, अब तक जितने भी खाते चल रहे हैं, उनकी जानकारी मिल सके, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया. इससे यही सा़फ होता है कि, सरकार काले धन के मामले पर देश के लोगों को गुमराह कर रही है. दरअसल, काले धन के मामले पर सरकार सोचती कुछ है, बोलती कुछ है और करती कुछ और है. प्रेस कांफ्रेंस और मीडिया के सामने आते ही सरकार चलाने वाले साधू बन जाते हैं. मंत्री और नेता भ्रष्टाचार से लड़ने की कसमें खाते हैं. झूठा विश्वास दिलाने की कोशिश करते हैं कि वे काले धन को वापस लाने के सभी तरह के प्रयास कर रहे हैं. असलियत यह है कि सरकार देश की जनता और कोर्ट के सामने एक के बाद एक झूठ बोल रही है. जबकी पर्दे के पीछे से वह वह देश की जनता के साथ धोखा कर रही है.
अब ज़रा भारत और स्विट्जरलैंड के बीच हुए समझौते के बारे में समझते हैं. यह समझौता पिछले साल अगस्त के महीने में भारत के वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी और स्विस फेडेरल कॉउंसलर मिशेलिन कैमेरे ने किया, जिसमें डबल टैक्सेशन समझौते में बदलाव करने पर दोनों राजी हुए. अब इस समझौते को क़ानूनी शक्ल देने के लिए बीते 17 जून को स्विट्जरलैंड की संसद ने इसे पारित कर दिया. स्विट्जरलैंड की संसद में पारित होने के बाद इसे क़ानून बनने में 90 से 100 दिन लगेंगे. प्रकाश चंद्र के मुताबिक़, जब यह समझौता बतौर क़ानून लागू हो जाएगा, उसके बाद भारत सरकार जिस भी बैंक खाते के बारे में जानकारी लेना चाहेगी, वह मिल सकती है. मतलब यह क़ानून उन्हीं खातों पर लागू होगा, जो इस क़ानून के लागू होने के बाद खोले जाएंगे. अब सवाल यही है कि, जब इस क़ानून के दायरे में पहले से चल रहे बैंक खाते नहीं आएंगे, तब इस क़ानून का भारत के लिए क्या मतलब है? इस क़रार से भारत को कोई फायदा नहीं होगा, बल्कि ऩुकसान होगा, क्योंकि अब हमने पुराने खातों के बारे में जानकारी लेने का अधिकार ही खो दिया है. अब जब जांच एजेंसियां पुराने खातों के बारे में कोई जानकारी लेना चाहेंगी तो स्विट्जरलैंड की सरकार यह क़रार दिखा देगी और कहेगी कि यह खाता क़ानून लागू होने से पहले का है, हम कोई जानकारी नहीं देंगे. अब सवाल यह है कि भारत सरकार और वित्त मंत्री ने ऐसा करार क्यों किया हैं? देश के लोग स्विस बैंकों में काला धन जमा करने वाले अपराधियों को सज़ा दिलाना चाहते हैं और एक तरफ सरकार है, जिसके कामकाज से तो यही लगता है कि वह साम-दाम-दंड-भेद लगाकर सिर्फ और सिर्फ उन्हें बचाने की कोशिश में लगी है.
अब देश की जनता हाथ मलती रह जाएगी, क्योंकि काला धन तो वापस अब नहीं आने वाला है
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