वास्तविक मदारी (सरकार) ...का डमरू (मीडिया) जो कुछ दिनों के लिए नौसिखिये मदारियों(टीम अन्ना ) को उधार दिया गया था आज अपने सही मदारी के वापस आ गया. और देश की जनता को जीत के झूठे गीत सुनाने में व्यस्त हो गया है. नौसिखिये मदारियों ने भी इसके सुर में सुर मिलाने में ही भलाई समझी और जैसे तैसे अपनी जान बचाई है. आप स्वयम विचार करिए ज़रा देखे अन्ना टीम द्वारा 16 अगस्त का अनशन जिन मांगों को लेकर किया गया था. उन मांगों पर आज हुए समझौते में कौन हारा कौन जीता इसका फैसला करिए
पहली मांग थी : सरकार अपना कमजोर बिल वापस ले.
नतीजा : सरकार ने बिल वापस नहीं लिया.
दूसरी मांग थी : सरकार लोकपाल बिल के दायरे में प्रधान मंत्री को लाये.
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं.
तीसरी मांग थी : लोकपाल के दायरे में सांसद भी हों :
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र नहीं.
चौथी मांग थी : तीस अगस्त तक बिल संसद में पास हो.
नतीजा : तीस अगस्त तो दूर सरकार ने कोई समय सीमा तक नहीं तय की कि वह बिल कब तक पास करवाएगी.
पांचवीं मांग थी : बिल को स्टैंडिंग कमेटी में नहीं भेजा जाए.
नतीजा : स्टैंडिंग कमिटी के पास एक के बजाय पांच बिल भेजे गए हैं.
छठी मांग थी : लोकपाल की नियुक्ति कमेटी में सरकारी हस्तक्षेप न्यूनतम हो.
नतीजा : सरकार ने आज ऐसा कोई वायदा तक नहीं किया. अन्ना को दिए गए समझौते के पत्र में भी इसका कोई जिक्र तक नहीं.
सातवीं मांग : जनलोकपाल बिल पर संसद में चर्चा नियम 84 के तहत करा कर उसके पक्ष और विपक्ष में बाकायदा वोटिंग करायी जाए. नतीजा : चर्चा 184 के तहत नहीं हुई, ना ही वोटिंग हुई.
उपरोक्त के अतिरिक्त तीन अन्य वह मांगें जिनका जिक्र सरकार ने अन्ना को आज दिए गए समझौते के पत्र में किया है वह हैं.
(1)सिटिज़न चार्टर लागू करना,
(2)निचले तबके के सरकारी कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में लाना,
(3)राज्यों में लोकायुक्तों कि नियुक्ति करना.
प्रणब मुखर्जी द्वारा इस संदर्भ में बहश के बाद संसद में दिए गए बयान(जिसे भांड न्यूज चैनल प्रस्ताव कह रहे हैं ) में स्पष्ट कहा गया कि इन तीनों मांगों के सन्दर्भ में सदन के सदस्यों की भावनाओं से अवगत कराते हुए लोकपाल बिल में संविधान कि सीमाओं के अंदर इन तीन मांगों को शामिल करने पर विचार हेतु आप (लोकसभा अध्यक्ष) इसे स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजें.
आइये अब 16 अगस्त से पीछे की और चलते हैं :
1. शीला शिक्षित की कुर्सी खतरे में पड़ी हुई थी, अजय माकन जी सबसे आगे थे मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में
2. मनमोहन सिंह और "छि:-बे-दम-बरम" का नाम कनिमोझी द्वारा सार्वजनिक कर दिया गया था,
3. गत 24 अगस्त को हुई पेशी में कनिमोझी ने साफ़ साफ़ कहा की मनमोहन सिंह और चिदंबरम ने ही Auction प्रक्रिया रुकवाई थी,
4. महंगाई के ऊपर जोरदार बहस चल थी थी, हालांकि महंगाई के मुद्दे पर जो वोटिंग हुई वो किसी काम की न रही
5. 2G और राष्ट्र्मंडल खेलों के घोटालों के ऊपर भी संसद में जोरदार बवाल मचा हुआ था और कांग्रेस चारों खाने चित्त नजर आ रही थी
कौन जीता..? कैसी जीत...? किसकी जीत...?
देश 8 अप्रैल को जहां खड़ा था आज टीम अन्ना द्वारा किये गए कुटिल और कायर समझौते ने देश को उसी बिंदु पर लाकर खड़ा कर दिया है. जनता के विश्वास की सनसनीखेज सरेआम लूट को विजय के शर्मनाक शातिर नारों की आड़ में छुपाया जा रहा है. फैसला आप करें. मेरा तो सिर्फ यही कहना है कि रात को दिन कैसे कह दूं.....?????
और अंत में एक महान उपलब्धी.... अनशन के समस्त दिनों में कहीं भी मसखरा दिग्विजय सिंह नहीं दिखाई दिया, और ना ही कुटिल सिब्बल की... कुटिल मुस्कान ही दिखाई दी l अब सब सामने आ जायेंगे, क्योंकि इन सबकी मोम भी अमेरिका से वापिस आने वाली है.
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