Friday, August 19, 2011

अन्ना हो या बाबा रामदेव भ्रस्टाचार के खिलाफ साथ दे

16 अगस्त 2011 की सुबह सरकारी पुलिस ने अन्ना हजारे को मयूर विहार से गिरफ्तार कर लोकतंत्र को जब सूली पर टांगा था तो जनलोकपाल से पूरी तरह न सहमत होते हुहे भी लोकतंत्र की रक्षा के लिए मै भी इन्टरनेट,फेसबुक,ट्वीटर छोड़कर सडको पर आया विरोध किया और देश की जीत के लिए प्रयास किया, और अन्ना के साथ रामलीला मैदान में भी जारी रहेगा |  अब जब ये तय हो गया की अन्ना जी का आगे का अनशन 19 अगस्त 2011 से रामलीला मैदान में 2 सितम्बर तक होगा| अब ये सोचने का वक़्त आ गया है कि,क्या वाकई सरकार अन्ना के सामने झुक गई है ? और अगर ऐसी बात है तो फ़िर अनशन किसलिये हो रहा है? सरकार अन्ना के जन लोकपाल को स्वीकार क्यो नही करती?  15 दिन के बाद क्या होगा? क्या 15 दिन के बाद सरकार मान जायेगी? अगर सरकार 15 दिन के बाद उनकी बात मान सकती है तो अब क्यो नही मान लेती? पूरा देश अन्ना जी के आमरण अनशन के पीछे पड़ा है किन्तु अनशन के कारण को अनशन के पूर्व समाप्त कर अन्ना जी को अनशन करनें से कोई क्यों नहीं रोकना चाहता 


एक बात यह भी देखिये की, आज सरकार और सरकारी पुलिस उसी रामलीला मैदान के लिये राजी हो गयी है जहां स्वामी रामदेव जी अनशन कर रहे थे बिना किसी वजह 4 जून की रात महीलाओ बच्चो को आशू गेस के गोलों और लाठियों से कूटा गया कुचला गया जबकी उनके पास इजाजत थी | सरकार और पुलिस का यह दोगला व्यवहार क्यो ? ध्यान दे कि, कही हम इस जनलोकपाल के चक्कर में कालेधन का मुद्दा और कांग्रेस के घोटाले वाले कारनामे भूल न जाये। देश में इतनी महंगाई है, लेकिन इस मुद्दे पर लोग आंदोलित न हों। दूसरा बड़ा मुद्दा देश का अरबो रुपया कालाधन विदेशों में है, जिसे बाबा रामदेव ने वापस लाने के लिए बीड़ा उठाया, लेकिन कांग्रेस नहीं चाहती थी कि, इस पर लोग एकजुट हों, इसलिए उसने उस आंदोलन के साथ बलात्कार किया और रामदेव को दिल्ली से निकाल दिया वो भी बिना किसी अपराध के। इस समय संसद का सत्र चल रहा है, वहां क्या मुद्दे उठाए जा रहे हैं, इस बात की जानकारी मीडिया में आ ही नहीं पा रही है, क्योंकि अखबारों और मीडिया को तो अन्ना से ही फुर्सत नहीं मिल रही, जो वह किसी और खबर को जगह दे। जहां तक जनलोकपाल बिल के प्रावधानों का सवाल है, यदि सरकार अन्ना की सारी बातें और शर्तें मान भी लेती है तो भी नौकरशाह उसमें इतनी रास्ते छोड़ देंगे कि आसानी से बचा जा सके। संसदीय इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण मौजूद हैं, जब विपक्ष ने अनेक दिनों तक संसद को ठप्प कर मुद्दा-विपक्ष पर जेपीसी की मांग मनवाई और उसकी जांच हुई, लेकिन कोई भी ऐसा उदाहरण नहीं है जिसमें किसी भी जिम्मेदार पर कोई सार्थक कार्यवाही हुई हो| 


आम गरीब आदमी जो भ्रस्टाचार से त्रस्त है, आम गरीब किसान जो आत्महत्या करने के कगार पर आ चुका है, वह जन लोकपाल के पास जाकर शिकायत कर पायेगा या उसकी भुखमरी और बेरोजगारी मिट जायेगी। लोकायुक्त पहले भी नियुक्त किये जा चुके है और भ्रष्ट्राचार निवारण एजन्सीयां बनी हुई है। कोई उनके पास शिकायत करने नही जाता। यही हाल जन लोकपाल के साथ होगा। जन लोकपाल में तो प्रावधान भी है अगर शिकायत झूठी साबित हुही जिसकी सम्भावना 90% रहेगी तो शिकायत करता को सजा और भारी जुरमाना दोनों देना होगा। जब तक सम्पुर्ण व्यवस्था परिवर्तन के लिये आंदोलन नही होता और उसमे सफ़लता नही मिलती तब तक सत्ता पर बैठे हुए भेडिये जनता का यू ही खून चूसते रहेंगे। मेरा मानना है की कानून बनाने से नहीं लोगो को जागरूक करने से ही भ्रस्टाचार समाप्त हो सकता है! पहले जो भ्रस्ट है उन्हें तो हटाओ, भ्रस्ट लोगो के हाथ मे ही नए लोगो को चुनने का अधिकार होता है तो वो अच्छे लोगो को क्यों चुनेगा! भ्रस्ताचारियो को हटाओ भ्रस्टाचार खुद समाप्त हो जायेगा! इस दृष्टि से स्वामी रामदेव जी का लक्ष्य और आंदोलन ज्यादा कारगर है । हमे ''भारत ''चाहिये,'' इण्डिया'' नही, वास्तव मे जो गांवों मे बसता है।

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