यह एक सामान्य सा लोकतांत्रिक नियम है कि जब कभी कोई लोकसभा या राज्यसभा सदस्य किसी विदेश दौरे पर जाते हैं तो उन्हें संसदीय कार्य मंत्रालय को या तो "सूचना" देनी होती है अथवा (कनिष्ठ सांसद जो मंत्री नहीं हैं उन्हें) "अनुमति" लेनी होती है।
इस वर्ष जून माह में जब बाबा रामदेव का आंदोलन उफ़ान पर था, उस समय सोनिया गाँधी अपने परिवार एवं विश्वस्त 11 अन्य साथियों के साथ लन्दन, इटली एवं स्विट्ज़रलैण्ड के प्रवास पर थीं (इस बारे में मीडिया में कई रिपोर्टें आ चुकी हैं)। काले धन एवं स्विस बैंक के मुद्दे पर जब सिविल सोसायटी द्वारा आंदोलन किया जा रहा था, तब "युवराज" लन्दन में अपना जन्मदिन मना रहे थे (Rahul Gandhi Celebrates Birthday in London)। सोनिया एवं राहुल के यह दोनों विदेशी दौरे मीडिया की निगाह में बराबर बने हुए थे (Sonia's Foreign Visit), परन्तु विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र(?) वाली भारत सरकार के लोकसभा सचिवालय को आधिकारिक रूप से इस बात की कोई जानकारी नहीं थी, कि देश की एक सबसे प्रमुख सांसद, NAC एवं UPA की अध्यक्षा तथा अमेठी के सांसद उर्फ़ युवराज "कहाँ" हैं?
यह बात "सूचना के अधिकार" कानून (Right to Information) के तहत माँगी गई एक जानकारी से निकलकर सामने आई है कि जून 2004 (अर्थात जब से UPA सत्ता में आया है तब) से "महारानी" एवं "युवराज" ने लोकसभा सचिवालय को अपनी विदेश यात्राओं के बारे में "सूचित" करना भी जरूरी नहीं समझा है (अनुमति लेना तो बहुत दूर की बात है)। (भला कोई "मालिक", अपने "नौकर" को यह बताने के लिए कैसे बाध्य हो सकता है, कि वह कहाँ जा रहा है… तो फ़िर महारानी और युवराज अपनी "प्रजा" को यह क्यों बताएं?) जब इंडिया टुडे ने लोकसभा सचिवालय के समक्ष RTI लगाकर सूचना चाही कि 14वीं लोकसभा के किन-किन सांसदों ने विदेश यात्राएं की हैं, तब सचिवालय ने "पवित्र परिवार"(?) को छोड़कर सभी सांसदों की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाई। लोकसभा सचिवालय के उप-सचिव हरीश चन्दर के अनुसार, सचिवालय सभी विदेश यात्राओं, साथ में जाने वाले प्रतिनिधिमण्डलों के अधिकारियों एवं पत्रकारों का पूरा ब्यौरा रखता है, प्रत्येक सांसद का यह कर्तव्य है कि वह अपनी विदेश यात्रा से पहले लोकसभा अध्यक्ष को सूचित करे…"।
इसके पश्चात इंडिया टुडे ने बाकायदा खासतौर पर अगले RTI आवेदन में 14वीं एवं 15वीं लोकसभा के सदस्यों के रूप में, "पवित्र परिवार" की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी चाही। 4 जुलाई 2011 को लोकसभा सचिवालय से जवाब आया, "रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं…"। (नौकर की क्या मजाल, कि वह मालिक से "नियम-कायदे" के बारे में पूछताछ करे या बताये?) इसी प्रकार का RTI आवेदन हिसार के रमेश कुमार ने लगाया था, जिन्हें पहले तो कोई सूचना ही नहीं दी गई… जब उसने केन्द्रीय सूचना आयुक्त (Central Information Commissioner) को "दूसरी अपील" की तब उस कार्यालय ने उस आवेदन को प्रधानमंत्री कार्यालय एवं संसदीय कार्य मंत्रालय को "फ़ारवर्ड" कर दिया। फ़िर पता नहीं कहाँ-कहाँ से घूमते-फ़िरते उस आवेदन का जवाब कैबिनेट सचिवालय की तरफ़ से श्री कुमार को 8 जुलाई 2011 को मिला कि उनके आवेदन को "राष्ट्रीय सलाहकार परिषद" (NAC) को भेज दिया गया है. NAC के कार्यालय से कहा गया कि उनके पास सोनिया गाँधी की विदेश यात्राओं के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं है…(यानी उनकी "किचन कैबिनेट" को भी नहीं पता??? घनघोर-घटाटोप आश्चर्य!!!)।
फ़िलहाल सोनिया गाँधी कैंसर के ऑपरेशन हेतु अमेरिका के एक अस्पताल में हैं, जहाँ कांग्रेस के खासुलखास नौकरशाह पुलक चटर्जी उनकी सुरक्षा एवं गोपनीयता का विशेष खयाल रखे हुए हैं। विदेशी मीडिया के "पप्पाराजियों" तथा भारतीय मीडिया के "बड़बोले" और "कथित खोजी" पत्रकारों को सोनिया गाँधी के आसपास बहने वाली हवा से भी दूर रखा गया है। हालांकि कोई भी सांसद (या मंत्री) अपनी निजी विदेश यात्राओं पर जाने के लिए स्वतन्त्र है (आम नागरिक की तरह) लेकिन चूंकि सांसद "जनता के सेवक"(??? क्या! सचमुच) हैं, इसलिए कम से कम उन्हें देश में आधिकारिक रूप से बताकर जाना चाहिए। किसी भी शासकीय सेवक से पूछ लीजिये, कि उसे विदेश यात्रा करने से पहले कितनी तरह की जानकारियाँ और "किलो" के भाव से दस्तावेज पेश करने पड़ते हैं… जबकि देश के "भावी प्रधानमंत्री"(?) और "वर्तमान प्रधानमंत्री नियुक्त करने वाली" मैडम, सरेआम नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं? जैसी की अपुष्ट खबरें हैं कि सोनिया गाँधी को कैंसर है (या कि था)। अब कैंसर कोई ऐसी सर्दी-खाँसी जैसी बीमारी तो है नहीं कि एक बार इलाज कर लिया और गायब… कैंसर का इलाज लम्बा चलता है और विशेषज्ञ डॉक्टरों के साथ कई-कई "मीटिंग और सिटिंग" तथा विभिन्न प्रकार की कीमो एवं रेडियो थेरेपी करनी पड़ती है (यहाँ हम यह "मानकर" चल रहे हैं कि सोनिया गाँधी को कैंसर हुआ है, क्योंकि जिस अस्पताल में वे भरती हैं वह एक कैंसर इंस्टीट्यूट है Sloan Kettering Cancer Center, New York)। इसका अर्थ यह हुआ कि पिछले 3-4 वर्षों में सोनिया गाँधी अपने "विश्वासपात्र" डॉक्टर से सलाह लेने कई बार विदेश आई-गई होंगी… क्या उन्हें एक बार भी यह खयाल नहीं आया कि लोकसभा सचिवालय एवं संसदीय कार्य मंत्रालय को सूचित कर दिया जाए? नियमों की ऐसी घोर अवहेलना, सत्ता के शीर्ष पर बैठे व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
माना कि कांग्रेस को लोकतन्त्र पर कभी भी भरोसा नहीं रहा (सन्दर्भ – चाहे आपातकाल थोपना हो, और चाहे कांग्रेस के दफ़्तरों के परदे बदलने के लिए "हाईकमान" की अनुमति का इन्तज़ार करने वालों का हुजूम हो), परन्तु इसका ये मतलब तो नहीं कि लोकसभा के छोटे-छोटे नियमों का भी पालन न किया जाए? बात सिर्फ़ नियमों की भी नहीं है, असली सवाल यह है कि आखिर "पवित्र परिवार"(?) को लेकर इतनी गोपनीयता क्यों बरती जाती है? माना कि "पवित्र परिवार" समूचे भारत की जनता को अपना "गुलाम" समझता है (बड़ी संख्या में हैं भी), परन्तु क्या एक लोकतन्त्र में आम जनता को यह जानने का हक नहीं है कि उनके "शासक" कहाँ जाते हैं, क्या करते हैं, उन्हें क्या बीमारी है, उनके रिश्तेदारियाँ कहाँ-कहाँ और कैसी-कैसी हैं? आदि-आदि…। अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का पूरा "हेल्थ बायोडाटा" नेट और अखबारों में उपलब्ध होता है।
इधर ऐसी उड़ती हुई अपुष्ट खबरें हैं कि सोनिया गाँधी का कैंसर का ऑपरेशन हुआ है (हालांकि अभी पार्टी की ओर से अधिकारिक बयान नहीं आया, और शायद ही आए)। जनता के मन में सबसे पहला सवाल यही उठता है कि क्या भारत में ऐसे ऑपरेशन हेतु "सर्वसुविधायुकक्त" अस्पताल या उम्दा डॉक्टर नहीं हैं? या फ़िर दुनिया का सबसे दक्ष डॉक्टर मुँहमाँगी फ़ीस पर यहाँ भारत आकर कोई ऑपरेशन नहीं करेगा? यदि गाँधी परिवार आदेश दे, तो दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विवेदी जैसे कई कांग्रेसी नेता इतने "सक्षम" हैं कि दुनिया के किसी भी डॉक्टर को "उठवाकर" ले आएं… तो फ़िर विदेश जाकर, गुपचुप तरीके से नाम बदलकर, ऑपरेशन करवाने की क्या जरुरत है, खासकर उस स्थिति में जबकि इलाज पर लगने वाला पैसा देश के करदाताओं के खून-पसीने की कमाई से ही लगने वाला है…परन्तु यह सवाल पूछेगा कौन?
चलते-चलते :- RTI की इसी सूचना के आधार पर कुछ और चौंकाने वाली जानकारियाँ भी मिली हैं। फ़रवरी 2008 से जून 2011 तक सबसे अधिक बार "निजी" विदेश यात्रा पर गए, टॉप चार सांसद इस प्रकार हैं…
1) मोहम्मद मदनी (रालोद) = फ़रवरी 2008 से अब तक कुल 14 यात्राएं, 116 दिन (सऊदी अरब, बांग्लादेश, अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन)
2) एनके सिंह (जद यू) = मई 2008 से अब तक कुल 13 यात्राएं, 92 दिन (अमेरिका, चीन, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, ग्रीस, डेनमार्क)
3) बदरुद्दीन अजमल (जी हाँ, वही असम के इत्र वाले, बांग्लादेशी शरणार्थी प्रेमी) = अगस्त 2009 से अब तक कुल 9 यात्राएं, 61 दिन (सऊदी अरब, दुबई)
4) सीताराम येचुरी (सीपीआई-एम) - सितम्बर 2009 से अब तक कुल 8 यात्राएं, 43 दिन (अमेरिका, सीरिया, स्पेन, चीन, बांग्लादेश)
इन सभी में और "पवित्र परिवार" में अन्तर यह है कि ये लोग लोकसभा सचिवालय एवं सम्बन्धित मंत्रालय को सूचित करके विदेश यात्रा पर गये थे…(आप सोच रहे होंगे कि बार-बार “पवित्र परिवार” क्यों कहा जा रहा है, ऐसा इसलिये है क्योंकि भारतीय मीडियाई भाण्डों के अनुसार यह एक पवित्र परिवार ही है। इस परिवार की “पवित्रता” को बनाए रखना प्रत्येक मीडिया हाउस का “परम कर्तव्य” है… इस परिवार की पवित्रता का आलम यह है कि भ्रष्टाचार की बड़ी से बड़ी आँच इसे छू भी नहीं सकती तथा त्याग-बलिदान की “बेदाग” चादर तो लिपटी हुई है ही… मीडिया को बस इतना करना होता है, कि वह इस परिवार की “पवित्रता” को “मेन्टेन” करके चले…)
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स्रोत :- http://indiatoday.intoday.in/site/story/sonia-gandhi-rahul-gandhi-lok-sabha/1/146474.html?source=IT02082011(श्री सुरेश चिपलूनकर के माध्यम से )
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