Friday, May 11, 2012

अर्थमेव जयते!

अपने पहले ही एपिसोड में आमिर खान ने वह कर दिखाया जो लंबे समय तक सेवा करने के बाद आमतौर पर कोई समाजसेवक नहीं कर पाता. इसे आप तकनीकि का चमत्कार कहें और सिनेमा और टीवी का प्रभाव कि आमिर खान ने एक झटके में करोड़ों दिलों को छू लिया. कुछ दर्दभरी कहानियां, कुछ तल्ख सच्चाईयां और कुछ झूठे मिथक पहले ही एपिसोड में टूट गये. लड़कियों को लेकर हमारा तथाकथित सभ्य समाज कितना असभ्य और जंगली है इसे जानकर भारत के किस नागरिक के मन में पीड़ा नहीं उभरी होगी? लेकिन कोई अगर आपको यह बता दे कि पीड़ा उभारने का यह कारोबार कम से कम स्टार टीवी और आमिर खान के लिए बहुत फायदे का सौदा है तो आपकी पीड़ा कितनी पीड़ित होगी? आपकी पीड़ा पीड़ित हो तो हो लेकिन सच्चाई तो यही है.

परिस्थितियों को देखते हुए कोई भी सोचेगा कि वास्तव में यह एक ऐसा प्रयास है जो देश के असहाय, गरीबों, निरीह लोगों की आवाज उभारने के लिए सच्चे मन से शुरू किया गया प्रयास है. लेकिन क्या यह संभव है कि घोर बाजारवादी युग में जीनेवाले लोगों के दिल में समाज के लिए इतना दर्द पैदा हो जाएगा कि वे अपना पैसा बहाकर सामाजिक सेवा करने निकल पड़ेंगे? ऐसा बिल्कुल नहीं है. इस समूची "सामाजिक क्रांति" का गजब का आर्थिक मॉडल है जो भावनात्मक शोषण की बुनियाद पर खड़ा किया गया है. लूट और ठगी का यह ऐसा बेहतरीन आर्थिक मॉडल है जो किसी और को कुछ दे या न दे, आमिर खान और स्टार समूह को मालामाल कर देगा. आइये समझते हैं कि इस सामाजिक सेवा का आर्थिक मेवा क्या है जिसे आमिर खान और स्टार न्यूज मिलकर खाने जा रहे हैं.

आमिर खान को सत्यमेव जयते के प्रति एपिसोड के लिए 3 करोड़ रूपया मिलेगा. महीने में कभी चार तो कभी पांच एपिसोड प्रसारित होंगे इस लिहाज से सत्यमेव जयते उन्हें हर महीने 12 से 15 करोड़ की मोटी कमाई करवायेगा. इसके अलावा स्टार प्लस ने इस कार्यक्रम का जमकर प्रचार किया है और संडे का टाइम स्लाट भी ऐसा चुना है जो किसी जमाने में रामायण या महाभारत का टाइम स्लाट हुआ करता था. इस टीवी शो की निर्माता खुद आमिर खान की कंपनी आमिर खान प्रोडक्शन्स लिमिटेड है इसलिए जानबूझकर समाज को समर्पित इस टीवी धारावाहिक के लिए जानबूझकर वह टाइम स्लाट चुना है. इसके पीछे कंपनी के कर्णधारों का तर्क है कि वे ऐसा प्राइट टाइम नहीं चुनना चाहते थे जिसमें दर्शकों को माल जाने या शापिंग करने की जल्दी लगी हो. इसलिए वे उस टाइम स्लाट पर गये जहां आदमी अपने घर में आराम से दिन शुरू करना चाहता है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई टेलीवीजन शो एक साथ सरकार के चैनल दूरदर्शन और एक निजी चैनल स्टार पर एकसाथ प्रसारित हो रहा है. इसके साथ ही स्टार के दूसरे सभी भाषाओं के चैनल और मा टीवी पर भी इसका प्रसारण होगा. मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शो को पहुंचाना है.

इस कार्यक्रम के नाम में जो सत्यमेव जयते शब्द इस्तेमाल किया गया है वह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का वाक्य है. आखिर कैसे उसे किसी कामर्शियल टीवी शो को प्रयोग करने दिया गया? इस पर रोक लगे न लगे लेकिन इस घोर बाजारवादी युग में यह साबित हो गया कि सत्यमेव जयते भी जब किसी आमिर खान के हाथ में लगता है तो अर्थमेव जयते बन जाता है. अब तक जितना इस शो का प्रोपोगेण्डा किया गया है उसमें यह समझाया गया है कि यह टीवी शो न सिर्फ सामाजिक मुद्दों को उठाने का ''महान काम'' कर रहा है बल्कि शो के जरिए समाजसेवी संस्थाओं को मदद भी पहुंचाई जा रही है. समाज के लिए गाहे बेगाहे काम करनेवाली फिल्मी अदाकारा शबाना आजमी ने इसे सामाजिक क्रांति की संज्ञा दे डाली हैं. सामाजिक क्रांति की तरफ टीवी के इस प्रयास का जो एसएमएस कैम्पेन चलाया जा रहा है उसमें भी सरकारी छूट प्रदान की जा रही है. कुछ कुछ उसी तर्ज पर जैसे मुसलमानों को सरकार हज के लिए सब्सिडी देती आई है. आमतौर पर ऐसे कार्यक्रमों में जो एसएमएस भेजे जाते हैं उन्हें कामर्शियल कैटेगरी में रखा जाता है और पांच रूपये प्रति एसएमएस चार्ज किया जाता हैं. लेकिन सरकार ने सीधे सीधे चार रूपये की सब्सिडी दे दी है. इसलिए आप अगर आमिर खान की इस ''सामाजिक क्रांति'' को सपोर्ट करते हैं तो आपको प्रति एसएमएस खर्च आयेगा सिर्फ एक रूपया। यह पैसा भी आमिर खान प्रोडक्शन या स्टार टीवी को नहीं जाएगा बल्कि सीधे उस एनजीओ को दे दिया जाएगा जो उस खास शो के लिए चुना जाएगा. इसके अलावा रिलायंस कंपनी का रिलायंस फाउण्डेशन तो है ही जो बाकी बची रकम अदा कर देगी.

सत्यमेव जयते के जरिए भारत में गरीबी की मार्केटिंग करके अमीर बनने का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया गया है. इस मॉडल में थोड़ा इमोशनल ब्लैकमेलिंग होती है, थोड़ा कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी होती है और ढेर सारा फ्रॉड शामिल होता है. मूलत: कारपोरेट घरानों की मैनेजमेन्ट स्टाइल में विकसित इस सोच में समझाया यह जाता है कि ऐसा करके वे समाज सेवा कर रहे हैं लेकिन ऐसे सामाजिक फ्रॉड के जरिए भावनाओं का जबर्दस्त व्यापार किया जाता है और कारपोरेट घराने देने के नाम पर जमकर आर्थिक लाभ कमाते हैं.

सत्यमेव जयते के लिए आमिर खान प्रोडक्शन्स लिमिटेड प्रति एपिसोड स्टार समूह से 4 करोड़ रूपया ले रहा है. इस चार करोड़ रूपये में तीन करोड़ रूपये आमिर खान की फीस है जो कि एक तरह से सीधे सीधे उनका फायदा है. बाकी बचा एक करोड़ रूपया प्रति एपिशोड खर्चा है जिसमें उनकी प्रोडक्शन कंपनी का मुनाफा भी शामिल है. यह मुनाफा आमिर कान के निजी फीस से अलग है. इसलिए अगर आमिर खान प्रति एपिशोड इस शो के लिए तीन करोड़ बतौर फीस ले रहे हैं तो कंपनी के प्रमोटर के बतौर उनको मुनाफे का हिस्सा अलग से पहुंच रहा है. इसके अलावा रिलायंस फाउण्डेशन से अलग से फीस वसूली जा रही है. क्योंकि इस कार्यक्रम के जरिए रिलायंस फाउण्डेशन भी समाज सेवक होकर उभरना चाहता है इसलिए वे भी पैसा देने में कोताही नहीं कर रहे हैं. अभी इस बात की पड़ताल होना बाकी है कि जो गैरसरकारी संगठन मदद के लिए चुने जा रहे हैं क्या वे पहले से रिलायंस के कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी का हिस्सा हैं या फिर आगे चलकर उनका हिस्सा हो जानेवाले हैं. अगर ऐसा होता है तो रिलायंस फाउण्डेशन भी घाटे में नहीं रहेगा. अपने सीएसआर के लिए अब अगर उसे देश के दूसरे हिस्से में पहुंचना है तो यह कार्यक्रम एक बेहतर प्लेटफार्म बन जाएगा.

क्योंकि इस पूरे शो के एसएमएस कैम्पेन का पैसा सामाजिक संस्था को दिया जाएगा इसलिए एसएमएस की कीमत घटाकर एक रूपये कर दी गई. याद रखिए सरकार ने बाकी के चार रूपये की छूट नहीं दी है बल्कि सब्सिडी दी है. सब्सिडी का मतलब है कि यह पैसा कार्यक्रम निर्माता को अदा किया जाएगा लेकिन सरकार के खाते से. इस तरह एक रूपया सामाजिक संस्था को देकर बाकी के चार रूपये आमिर खान प्रोडक्शन और स्टार नेटवर्क आपस में बांट लेंगे. इसके अलावा जंगली.कॉम को भी इस कार्यक्रम में पार्टनर बनाया गया है जो कि इंटरनेट पर सामान बेचनेवाली कंपनी एमेजन.कॉम नेटवर्क का हिस्सा है. जंगली.कॉम आपको डोनेशन के लिए प्रेरित करेगी और आपसे कहेगी कि आप उसके यहां से माल खरीदते हैं तो वह उस एनजीओ को कुछ रेजगारी देगी जिसे आमिर खान ने अपने टीवी शो में दिखाया था.

इस गुणा गणित के अलावा विज्ञापन और मुख्य प्रायोजकों की कमाई तो है ही जो सीधे तौर पर स्टार समूह को जाएगी. अगर स्टार समूह हर एपीशोड पर चार करोड़ रूपया आमिर खान प्रोडक्शन्स को दे रहा है तो निश्चित है कि वह प्रति एपीशोड अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहेगा. इसीलिए इस टीवी शो का जमकर प्रचार किया गया है और भावनात्मक माहौल तैयार किया जा रहा है ताकि लोग इस कार्यक्रम से कुछ उसी तरह से भावनात्मक रूप से जुड़ जाएं जैसे रामायण या महाभारत से जुड़े थे. इसका फायदा स्टार समूह को होगा. ऊंची कीमत अदा करने के बाद वह अब तक का सबसे मंहगा विज्ञापन स्लॉट इस कार्यक्रम के लिए बेंच रहा है. प्रति 10 सेकेण्ड स्टार 10 लाख रूपये वसूल कर रहा है. एक घण्टे दस मिनट के इस कार्यक्रम में दस मिनट भी कामर्शियल ब्रेक बनता है तो प्रति एपिशोड छह करोड़ रूपये की आमदनी होती है. मीडिया रिपोर्ट बता रही है कि कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही 80 प्रतिशत ऐड स्लॉट बेचा जा चुका था. इसके अलावा स्टार समूह ने छह सह प्रायोजक बनाये हैं जिसमें एक्सिस बैंक, कोका कोला, स्कोदा, बर्जर पेन्ट्स, डिक्सी टेक्सटाइल तथा जानसन एण्ड जानसन शामिल हैं. ये सभी कंपनियां 13 एपिसोड के लिए 6 से 7 करोड़ रूपया अतिरिक्त अदा करेंगी. भारती एयरटेल और एक्वागार्ड दो मुख्य प्रायोजक हैं जो क्रमश: 18 करोड़ और 16 करोड़ रूपये अदा कर रहे हैं. अब जरा हिसाब लगाइये कि सत्यमेव जयते की इमोशनल ब्लैकमेलिंग से आमिर खान और स्टार न्यूज कितना पैसा कमा रहे हैं?

अब यह बाजार का नया दांव है. भाव विहीन बाजार अब भावनाओं का व्यापार करता है. आप सौ रूपये का सैम्पू खरीदते हैं तो एक रूपये किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर दिया जाता है. क्योंकि आप खुद बहुत गैरजिम्मेदार नागरिक हैं इसलिए हाशिये पर फेंके गये नागरिकों की चिंता कारपोरेट कंपनियां अपने हिसाब से करने लगी हैं. कारपोरेट कंपनियों से कोई यह नहीं पूछता कि इन हाशिये पर गये लोगों में तुम्हारा कितना योगदान है? कोई पूछे न पूछे कंपनियां जानती हैं कि अपने मुनाफे के लिए वे कैसे नागरिक से नागरिक को दूर कर देती हैं. इस बढ़ती दूरी से ही गरीबी और अभाव पैदा होता है और पैदा होता है वह गैरजिम्मेदार समाज जो अपनों का खून पीकर अपनी प्यास बुझाता है.

हम सब जानते हैं कि गरीब के निवाले पर पिछले करीब आधे शताब्दी तक हमारे देश में सरकारें अपना पेट भरती रही हैं. अब तो सरकारों ने गरीबों का नारा बनाना भी बंद कर दिया है. इसलिए गरीबों और आम आदमी के निवाले पर डाका डालने का नया फार्मूला कंपनियों ने इजाद कर लिया है. भावनात्मक शोषण उसका बड़ा कारगर हथियार है. इसलिए शो के दौरान जैसे ही किसी लड़की या महिला की आंख गीली होती है कैमरा कमजोर प्रेजेन्टर आमिर खान को छोड़कर उसे दिखाने लगता है. समस्या हमें भले ही परेशान न करती हो लेकिन समस्या देखकर परेशान हुए लोग तो प्रेरित करते ही हैं कि हमें भी परेशान हो जाना चाहिए. बस बाजार के इस व्यापार का यही मूल मंत्र है जिसे आमिर खान प्रोडक्शन और स्टार समूह के उदय शंकर मिलकर भुना रहे हैं. कल तक हंसी बिकती थी तो हंसी को बेचा गया, अब गम बिकेगा तो गम भी बाजार में बिकता नजर आयेगा.

फिर भी ऐसा नहीं है कि इस भावनात्मक शोषण के जरिए सिर्फ आमिर खान या स्टार न्यूज ही पैसा पीट रहे हैं. उन्हें भी कुछ न कुछ लाभ तो मिल ही रहा है जो इस शो का हिस्सा हो रहे हैं. फिर वे चाहे वे गैरसरकारी संगठन हों या फिर वह व्यक्ति जिसे इस शो के लिए चुना जाता है. लेकिन आखिर में सवाल यह उठता है कि अगर किसी एक ऐसे कार्यक्रम में जिसमें सबको फायदा होता दिख रहा है तो घाटे में कौन है? दिमाग पर जोर डालिए और सोचिए कि भावनात्मक रूप से आखिर किसे ब्लैकमेल करके यह सारा आर्थिक मॉडल तैयार किया गया है? सोचिए....सोचिए वह आदमी आपसे ज्यादा दूर नहीं है.









(visfot.com)

Saturday, May 5, 2012

गुजरात का सच...................


(गोधरा में ट्रेन में जले एक छोटे बालक का चित्र)
आज जहा देखो वहा गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है फिर चाहे वो गूगल हो या फसबूक हो या फिर टीवी| रोज रोज नए खुलासे हो रहे हैं| रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है| सबका निशाना केवल एक नरेन्द्र मोदी| जिसे देखो वो अपने को जज दिखाने में लगा है| हर कोई सेकुलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं और स्थिती ये है की उन सब का बस चले तो मानिये नरेंदर मोदी जी को बिना सजा मिले ही तोप से उड़वा दे| मै भी दंगो को गलत मानता हु क्युकी दंगे सिर्फ दर्द दे कर जाते हैं पर जब पानी सर के उप्पर तक आ जाये तो अपने बचाव के लिए प्रयास करना बिलकुल गलत नहीं है इसलिए गोधरा की क्रिया की प्रतिक्रिया में हुहे गुजरात के दंगे किसी भी नजर से गलत नहीं ठेराए जा सकते|
अब सवाल उठता है की गुजरात दंगा हुआ क्यों?

२७ फरवरी २००२ साबरमती ट्रेन के बोगियों को जलाया गया गोधरा रेलवे स्टेशन से करीब ८२६ मीटर की दुरी पर| इस ट्रेन में जलने से ५७ लोगो को मौत हुई| प्रथम दृष्टया रहे वहा के १४ पुलिस के जवान जो उस समय स्टेशन पर मौजूद थे और उनमे से ३ पुलिस वाले घटना स्थल पर पहुचे और साथ ही पहुचे अग्नि शमन दल के एक जवान सुरेश गिरी गोसाई जी| अगर हम इन चारो लोगो की माने तो म्युनिसिपल काउंसिलर हाजी बिलाल भीड़ को आदेश दे रहे थे ट्रेन के इंजन को जलाने का| साथ ही साथ जब ये जवान आग बुझाने की कोशिस कर रहे थे तब ट्रेन पर पत्थर बाजी चालू कर दी गई भीड़ के द्वारा| अब इसके आगे बढ़ कर देखे तो जब गोधरा पुलिस स्टेशनकी टीम पहुची तब २ लोग करीब १,००० की भीड़ को उकसा रहे थे ये थे म्युनिसिपल प्रेसिडेंट मोहम्मद कलोटा और म्युनिसिपल काउंसिलर हाजीबिलाल| अब सवाल उठता है की मोहम्मद कलोटा और हाजी बिलाल को किसने उकसाया और ये ट्रेन को जलाने क्यों गए? सवालो की बाढ़ यही नहीं रुकते हैं बल्कि सवालो की लिस्ट अभी लम्बी है|

अब सवाल उठता है की क्यों मारा गया अयोध्या से लौट रहे राम भक्तो को| कुछ मीडिया ने बताया की ये राम भक्त मुसलमानों को उकसाने वाले नारे लगा रहे थे ….अब क्या कोई बताएगा की क्या भगवान राम के भजन मुसलमानों को उकसाने वाले लगते हैं?

लेकिन इसके पहले भी एक हादसा हुआ २७ फ़रवरी २००२ को सुबह ७:४३ मिनट ४ घंटे की देरी से जैसे ही साबरमती ट्रेन चली और प्लेट फ़ॉर्म छोड़ा तो प्लेटफ़ॉर्म से १०० मीटर की दुरी पर ही १००० लोगो की भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर चलाने चालू कर दिए पर यहाँ रेलवे की पुलिस ने भीड़ को तितर बितर कर दिया और ट्रेन को आगे के लिए रवाना कर दिया| पर जैसे ही ट्रेन मुस्किल से ८०० मीटर चली अलग अलग बोगियों से कई बार चेन खिंची गई| बाकि की कहानी जिस पर बीती उसकी जुबानी| उस समय मुस्किल से १५-१६ साल की एक बच्ची की जुबानी| ये बच्ची थी कक्षा ११ में पढने वाली गायत्री पंचाल जो की उस समय अपने परिवार के साथ अयोध्या से लौट रही थी के अनूसार ट्रेन में राम भजन चल रहा था और ट्रेन जैसे ही गोधरा से आगे बढ़ी एक दम से रोक दिया गई चेन खिंच कर| उसके बाद देखने में आया की एक भीड़ हथियारों से लैस हो कर ट्रेन की तरफ बढ़ रही है| हथियार भी कैसे लाठी डंडा नहीं बल्कि तलवार, गुप्ती, भाले, पेट्रोल बम्ब, एसिड बल्ब्स और पता नहीं क्या क्या| भीड़ को देख कर ट्रेन में सवार यात्रियों ने खिड़की और दरवाजे बंद कर लिए पर भीड़ में से जो अन्दर घुस आए थे वो अयोध्या से लौट रहे राम भक्तो को मार रहे थे और उनके सामानों को लूट रहे थे और साथ ही बहार खड़ी भीड़ मारो-काटो के नारे लगा रही थी| एक लाउड स्पीकर जो की पास के मस्जिद पर था उससे बार बार ये आदेश दिया जा रहा था की “मारो, काटो. लादेन के दुश्मनों ने मारो”| साथ ही बहार खड़ी भीड़ ने पेट्रोल डाल कर आग लगाना चालू कर दिया जिससे कोई जिन्दा ना बचे| ट्रेन की बोगी में चारो तरफ पेट्रोल भरा हुआ था| दरवाजे बहार से बंद कर दिए गए थे ताकि कोई बहार ना निकल सके| एस-६ और एस-७ के वैक्यूम पाइप कट दिया गया था ताकि ट्रेन आगे बढ़ ही नहीं सके| जो लोग जलती ट्रेन से बहार निकल पाए कैसे भी उन्हें काट दिया गया तेज हथियारों से कुछ वही गहरे घाव की वजह से मारे गए और कुछ बुरी तरह घायल हो गए|

अब सवाल ये है कि, हिन्दुओ ने सुबह ८ बजे ही दंगा क्यों नहीं शुरू किया, बल्कि हिन्दू उस दिन शाम तक शांत बना रहा (ये बात आज तक किसी को नहीं दिखी है)| हिन्दुओ  ने जवाब देना चालू किया जब उनके घरो, गावो, मोहल्लो में वो जली और कटी फटी लाशें पहुंची| क्या ये लाशें हिन्दुओ को मुसलमानों की गिफ्ट नहीं थी और क्या  हिन्दुओ को शांत बैठना चाहिए था? सेकुलर बन कर या शायद हाँ| हिन्दू सड़क पर उतारे २७ फ़रवरी २००२ की शाम से| पूरा एक दिन हिन्दू शांति से घरो में बैठा रहा| अगर वो दंगा हिन्दुओ या मोदी ने करना था तो २७ फ़रवरी २००२ की सुबह ८ बजे से क्यों नहीं चालू हुआ? जबकि मोदी ने २८ फ़रवरी २००२ की शाम को ही आर्मी को सडको पर लाने का आदेश दिया जो की अगले ही दिन १ मार्च २००२ को सडको पर आर्मी उतर आयी गुजरात को जलने से बचाने के लिए| पर भीड़ के आक्रोश के आगे आर्मी भी कम पड़ रही थी तो १ मार्च २००२ को ही मोदी ने अपने पडोसी राज्यों से सुरक्षा कर्मियों की मांग करी| ये पडोसी राज्य थे महाराष्ट्र (कांग्रेस शासित- विलाश रावदेशमुख मुख्य मंत्री), मध्य प्रदेश (कांग्रेस शासित- दिग विजय सिंह मुख्य मंत्री), राजस्थान (कांग्रेस शासित- अशोक गहलोत मुख्य मंत्री) और पंजाब (कांग्रेस शासित- अमरिंदर सिंह मुख्य मंत्री) | क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पुछा की अपने सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में जबकि गुजरात ने आपसे सहायता मांगी थी| या ये एक सोची समझी गूढ़ राजनीती द्वेष का परिचायक था इन प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों का गुजरात को सुरक्षा कर्मियों का ना भेजना|

उसी १ मार्च २००२ को हमारे राष्ट्रीय मानवीय अधिकार (National Human Rights) वालो ने मोदी को अल्टीमेटम दिया ३ दिन में पुरे घटनाक्रम का रिपोर्ट पेश करने के लिए लेकिन कितने आश्चर्य की बात है की यही राष्ट्रीय मानवा अधिकार वाले २७ फ़रवरी २००२ और २८ फ़रवरी २००२ को गायब रहे| इन मानवा अधिकार वालो ने तो पहले दिन के ट्रेन के फूंके जाने पर ये रिपोर्ट माँगा की क्या कदम उठाया गया गुजरात सरकार के द्वारा|

एक ऐसे ही सबसे बड़े घटना क्रम में दिखाए गए या कहे तो बेचे गए “गुलबर्ग सोसाइटी” के जलने की| इस गुलबर्ग सोसाइटी ने पूरे मीडिया का ध्यान अपने तरफ खिंच लिया| यहाँ एक पूर्व संसद एहसान जाफरी साहब रहते थे| ये महाशय का ना तो एक भी बयान था २७ फरवरी २००२ को और ना ही ये डरे थे उस समय तक| लेकिन जब २८ फरवरी २००२ की सुबह जब कुछ लोगो ने इनके घर को घेरा जिसमे कुछ अपराधी मुस्लमान छुपे हुए थे, तो एहसान जाफरी जी ने भीड़ पर गोली चलवाई अपने लोगो से जिसमे २ हिन्दू मरे और १३ हिन्दू गंभीर रूप से घायल हो गए| फिर इस घटनाक्रम के बाद जब भीड़ बढ़ने लगी इनके घर पर तो ये अपने यार-दोस्तों को फ़ोन करने लगे और तभी गैस सिलिंडर के फटने से कुल ४२ लोग मरे| यहाँ शायद भीड़ के आने पर ही एहसान साहब को पुलिस को फ़ोन करना चाहिए था ना की खुद के बन्दों के द्व���र��� गोली चलवानी चाहिए थी| पर इन्होने गोली चलाने के बाद फ़ोन किया डाइरेक्टर जेनेरल ऑफ़ पुलिस को| यहाँ एक और झूट सामने आया जब अरुंधती रॉय जैसी खुख्यात हिन्दू विरोधी लेखिका ने यहाँ तक लिख दिया की एहसान जाफरी की बेटी को नंगा करके बलात्कार के बाद मारा गया और साथ ही एहसान जाफरी को भी| पर यहाँ एहसान जाफरी के बड़े बेटे ने ही पोल खोल दी की उसके पिता की जान गई थी उस दिन पर उसकी बहन तो अमेरिका में रहती थी और अब भी रहती है| तो यहाँ कौन किसको झूटे केस में फंसना चाह रहा है ये स्पष्ट होता है|

अब यहाँ तक तो सही था पर गोधरा में साबरमती को कैसे इस दंगे से अलग किया जाता और हिन्दुओ को इसके लिए केसे आरोपित किया जाता इसके लिए लोग गोधरा के दंगे को ऐसे तो संभल नहीं सकते थे अपने शब्दों से, तो एक मनगडंत कहानी की स्क्रिप्ट लिखी गई| कहानी कुछ इस प्रकार थी की कारसेवक गोधरा स्टेशन पर चाय पिने उतरे और चाय देने वाला जो की एक मुस्लमान था उसको पैसे नहीं दिए….....ये बात अलग है कि गुजराती अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं…चलिए छोडिये ये धर्मान्धो की कहानी में कभी दिखेगा ही नहीं आगे बढ़ते हैं| अब रामभक्तों ने पैसा तो दिया नहीं बल्कि बिना किसी उकसावे के रामभक्त  मुसलमान की दाढ़ी खिंच कर उसको मारने लगे तभी उस बूढ़े मुस्लमान की बेटी जो की १६ साल की बताई गई वो वाह आई तो कारसेवको ने उसको बोगी में खिंच कर बोगी का दरवाजा बंद कर दिया अन्दर से| और इसके प्रतिफल में मुसलमानों ने ट्रेन में आग लगा दी और ५८ लोगो को मार दिया जिन्दा जलाकर या काट कर| अब अगर इस मनगढ़ंत कहानी को भी मान लें तो कई सवाल फिर उठते हैं:-

क्या उस बूढ़े मुसलमान चाय वाले ने रेलवे पुलिस को इत्तिला किया?

रेलवे पुलिस उस ट्रेन को वहा से जाने नहीं देती या लड़की को उतर लिया जाता|

उस बूढ़े चाय वाले ने २७ फ़रवरी २००२ को कोई ऍफ़.आइ.आर क्यों नहीं दाखिल किया?

५ मिनट में ही सैकड़ो लीटर पेट्रोल और इतनी बड़ी भीड़ हथियारों के साथ आखिर केसे जुटी?

सुबह ८ बजे सैकड़ो लीटर पेट्रोल आया कहा से ?

एक भी केस २७ फ़रवरी २००२ के तारीख में मुसलमानों के द्वारा क्यों नहीं दाखिल हुआ ?

अब असलियत ये सामने आयी रेलवे पुलिस की तफतीस में की उस दिन गोधरा स्टेसन पर कोई ऐसी घटना हुई ही नहीं थी| ना तो चाय वाले के साथ कोई झगडा हुआ था और ना ही किसी लड़की के साथ में कोई बदतमीजी या अपहरण की घटना हुई| इसके बाद आयी नानावती रिपोर्ट में कहा गया है की जमीअत-उलमा-इ-हिंद का हाथ था उन ५८ लोगो के जलने में और ट्रेन के जलने में|

दंगे में ७२० मुस्लमान मारे गए थे तो २५० हिन्दू भी मारे गए थे| मुसलमानों के मरने का सभी शोक मानते हैं चाहे वो हिन्दू हो, चाहे वो मुस्लमान हो या चाहे वो राजनेता या मीडिया हो पर दंगे में २५० मरे हुए हिन्दुओ और साबरमती ट्रेन में मरे ५८ हिंदुवो को कोई नहीं पूछता है कोई बात तक नहीं करता है सभी को केवल मरे हुए मुस्लमान दीखते हैं|

एक और बात काबिले गौर है क्या किसी भी मुस्लिम लीडर का बयान आया था साबरमती ट्रेन के जलने पर ?
क्या किसी मुस्लिम लीडर ने साबरमती ट्रेन को चिता बनाने के लिए खेद प्रकट किया ?
अब एक छोटा सा इतिहास देना चाहूँगा गोधरा के पुराने दंगो का…क्युकी २००२ की घटना पहली घटना नहीं थी गोधरा के लिए.

१९४६: सद्वा रिज़वी और चुडिघर ये दोनों पाकिस्तान सपोर्टर थे ने पारसी सोलापुरी को दंगे में मारा बाद में विभाजन के बाद चुडिघर पाकिस्तान चला गया.

१९४८: सद्वा रिज़वी ने ही कलेक्टर श्री पिम्पुत्कर को मरना चाहा जिसे कलेक्टर के अंगरक्षकों ने बचाया अपनी जान देकरऔर उसके बाद सद्वा रिज़वी पाकिस्तान भाग गया.

१९४८: एक हिन्दू का गला काटा गया और करीब २००० हिन्दू घर जला दिए गए जहा ६ महीने तक कर्फ्यू चला

१९६५: पुलिस चौकी नंबर ७ के पास के हिंदुवो के घर और दुकान जला दिए गए साथ ही पुलिस स्टेशन पर भी मुसलमानों काहमला हुआ उस समय वहा के MLA कांग्रेस के थे और वो भी मुस्लमान थे

१९८०: २ हिन्दू बच्चो सहित ५ लोगो को जिन्दा जला दिया गया, ४० दुकानों को जला दिया गया, गुरूद्वारे को जला दिया गया मुसलमानों के द्वारा, यहाँ १ साल तक कर्फ्यू रहा

१९९०: ४ हिन्दू शिक्षको के साथ एक हिन्दू दर्जी को काट दिया गया.

१९९२: १०० से ज्यादा घरो को जला दिया गया ताकि ये मुस्लमान उन जमीनों पर कब्ज़ा कर सकें आज वो जमीने वीरान पड़ीहैं क्युकी इनके चलते हिनू वहा से चले गए

२००२: ३ बोगियों को जला दिया गया जिसमे ५८ लोग जल कर मरे इनमे से कुछ लोग जो बचे और बहार निकलने की कोशिसकिये उनको काट दिया गया

२००३: गणेश प्रतिमा के विशार्जन के समय मुसलमानों ने पत्थरबाजी की और इस खबर को रीडिफ़ और टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने छपा बाकि किसी ने भी नही

Friday, May 4, 2012

उपासना की बजाय वासना का केंद्र बना चर्च?


केरल के एक अंग्रेजी अख़बार में एक पूर्व नन सिस्टर मैरी चांडी की आने वाली पुस्तक के कुछ अंश क्या छपे, बवाल मच गया। अब तो पुस्तक रिलीज़ भी हो गई, लेकिन आनन-फानन में चर्च ने कह डाला, वो कभी नन थी ही नहीं। चर्च ने ये तो माना कि मैरी चांडी रसोइये के पद पर कुछ दिनों तक उसके साथ थी, लेकिन इस सवाल पर खामोश है कि पादरी ने उनके साथ बदसलूकी की थी या नहीं।
ग़ौरतलब है कि अपनी आत्मकथा के तौर पर छपी पुस्तक 'ननमा निरंजवले स्वस्ति' (Best wishes, Graceful Lady) में 67 वर्षीय सिस्टर मैरी चांडी ने लिखा है कि एक पादरी ने उनके साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी और इसका विरोध करने पर उन्हें चर्च छोड़ना पड़ा था। यह घटना 12 साल पहले की है। उन्होंने अपनी आत्मकथा के माध्यम से चर्चों में हो रहे यौन शोषण का जिक्र किया है। नन की इस आत्मकथा ने इसाई, खासकर कैथोलिक समुदाय को झकझोर रख दिया है।
सिस्टर चांडी ने इस बात का राजफाश किया है कि कैथोलिक चर्चों में पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण किया जाता है। ''कैथोलिक चर्चों में पादरियों द्वारा ननों का यौन शोषण किया जाता है। यहां आध्यात्मिकता कम वासना ज्यादा होती है'' सिस्टर चांडी ने लिखा है।
हालांकि चर्चों में हो रहे यौन शोषण पर लिखी गई यह पहली किताब नहीं है। करीब दो साल पहले एक नन सिस्टर जेस्मी की पुस्तक 'आमेन : द ऑटोबायॉग्रफी ऑफ ए नन' ने एक किताब तहलका मचा दिया था। उनकी किताब ने भी कॉन्वेंट में हो रहे यौन शोषण और व्यभिचार का खुलासा किया था, लेकिन तब भी चर्च ने अपने गिरेबान में झांकने की बजाय सिस्टर जेस्मी को ही झूठा ठहराया था।
सिस्टर मैरी ने लिखा है मैंने 'वायनाड गिरिजाघर' में हुए अपने अनुभव को समेटने की कोशिश की है। उनके मुताबिक चर्च में जिंदगी आध्यात्मिकता के बजाय वासना से भरी थी। उन्होंने लिखा है, एक पादरी ने मेरे साथ बलात्कार करने की कोशिश की थी। मैंने उस पर स्टूल चलाकर इज्जत बचाई थी।'' सिस्टर मैरी ने लिखा है, मैंने जाना कि पादरी और नन दोनों ही मानवता की सेवा के संकल्प से भटक जाते हैं और अपनी शारीरिक जरूरतों की पूर्ति में लगे रहते हैं।'' इसी वजह से तंग आकर उन्होंने गिरजाघर और कॉन्वेंट छोड़ दिया।
हालांकि सिस्टर मैरी ने अपनी जिंदगी के 40 साल नन के रूप में बिताए हैं। जैसा कि सिस्टर मैरी ने लिखा है कि वे 13 साल की उम्र में घर से भागकर नन बनी थीं। उन्होंने चर्चों के पादरियों पर न सिर्फ ननों से यौन संबंध बनाने, बल्कि उनसे पैदा हुए नवजात बच्चों को जान से मार डालने तक के गंभीर आरोप लगाए हैं। इस आत्मकथा से कई ऐसे सवाल खड़े हुए हैं जिनका जवाब चर्च सिर्फ सिस्टर चांडी से पल्ला झाड़कर नहीं दे सकता।
चर्च सिस्टर चांडी को नन मानने से ही इंकार कर रहा है। वे कहती हैं कि उन्हें चर्च के इंकार पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। 'वे तो मुझपर बाहरी होने का आरोप लगाएंगे ही, ये किसी धार्मिक समुदाय के लिए कोई अच्छी ख़बर तो नहीं है।'' सिस्टर चांडी ने मीडिया से कहा।
उधर चर्च के लिए चिंता की बात ये भी है कि पुलप्ल्ली में अनाथ बच्चों के लिए आश्रम चला रही सिस्टर चांडी अपने कॉन्वेंट के कुछ बाकी बचे अनुभवों को भी छापने की योजना बना रही हैं।

Tuesday, May 1, 2012

इस्लामिक बैंकिंग और भारत


इस्लामिक बैंकिंग की योजना पर हाईकोर्ट की रोक :- डॉ स्वामी जीते… क्या भाजपा कोई सबक लेगी?...... Islamic Banking, Kerala, NBFC, Terror Funding

जैसा कि अब धीरे-धीरे सभी जान रहे हैं कि केरल में इस्लामीकरण और एवेंजेलिज़्म की आँच तेज होती जा रही ...है। दोगले वामपंथी और बीमार धर्मनिरपेक्षतावादी कांग्रेस मुसलमानों के वोट लेने के लिये कुछ भी करने को तैयार हैं, इसी कड़ी में केरल के राज्य उद्योग निगम (KSIDC) ने केरल में “इस्लामिक बैंक” खोलने की योजना बनाई थी।

जिन्हें पता नहीं है, उन्हें बता दूं कि “इस्लामिक बैंकिंग” शरीयत के कानूनों के अनुसार गठित किया गया एक बैंक होता है, जिसके नियमों के अनुसार यह बगैर ब्याज पर काम करने वाली वित्त संस्था होती है, यानी इनके अनुसार इस्लामिक बैंक शून्य ब्याज दर पर लोन देता है और बचत राशि पर भी कोई ब्याज नहीं देता। यहाँ देखें… 

आगे हम देखेंगे कि क्यों यह आईडिया पूर्णतः अव्यावहारिक है, लेकिन संक्षेप में कहा जाये तो “इस्लामिक बैंकिंग” एक पाखण्डी अवधारणा है, तथा इसी अवधारणा को केरल राज्य में लागू करवाने के लिये वामपंथी मरे जा रहे हैं, ताकि नंदीग्राम घटना और ममता की धमक के बाद, पश्चिम बंगाल और केरल में छिटक रहे मुस्लिम वोट बैंक को खुश किया जा सके। परन्तु केरल सरकार की इस “महान धर्मनिरपेक्ष कोशिश” को डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की याचिका ने धक्का देकर गिरा दिया है और केरल हाईकोर्ट ने फ़िलहाल इस्लामिक बैंकिंग सिस्टम को लागू करने की किसी भी “बेशर्म कोशिश” पर रोक लगा दी है।


डॉ स्वामी ने ऐसे-ऐसे तर्क दिये कि केरल सरकार की बोलती बन्द हो गई, और आतंकवादियों को “वैध” तरीके से फ़ण्डिंग उपलब्ध करवाने के लिये दुबई के हवाला ऑपरेटरों की योजना खटाई में पड़ गई। आईये पहले देखते हैं कि डॉ स्वामी ने इस्लामिक बैंकिंग के विरोध में क्या-क्या संवैधानिक तर्क पेश किये –

भारत में खोली जाने वाली इस्लामिक बैंकिंग पद्धति अथवा इस प्रकार की कोई भी अन्य नॉन-बैंकिंग फ़ाइनेंस कार्पोरेशन भारत के निम्न कानूनों और संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन करती है –

1) पार्टनरशिप एक्ट (1932) का उल्लंघन, जिसके अनुसार अधिकतम 20 पार्टनर हो सकते हैं, क्योंकि KSIDC ने कहा है कि यह पार्टनरशिप (सहभागिता) उसके और निजी उद्यमियों के बीच होगी (जिनकी संख्या कितनी भी हो सकती है)।

2) भारतीय संविदा कानून (1872) की धारा 30 के अनुसार “शर्तों” का उल्लंघन (जबकि यह भी शरीयत के अनुसार नहीं है)।

3) बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट (1949) के सेक्शन 5(b), (c), 9 और 21 का उल्लंघन, जिसके अनुसार किसी भी लाभ-हानि के सौदे, खरीद-बिक्री अथवा सम्पत्ति के विक्रय पर ब्याज लेने पर प्रतिबन्ध लग जाये।

4) RBI कानून (1934) का उल्लंघन

5) नेगोशियेबल इंस्ट्रूमेण्ट एक्ट (1881) का उल्लंघन

6) को-ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट (1961) का उल्लंघन


इसके अलावा, शरीयत के मुताबिक इस्लामिक बैंकिंग पद्धति में सिनेमा, होटल, अन्य मनोरंजन उद्योग, शराब, तम्बाकू आदि के व्यापार के लिये भी ॠण नहीं दे सकती, जो कि संविधान की धारा 14 (प्रत्येक नागरिक को बराबरी का अधिकार) का भी उल्लंघन करती है, क्योंकि यदि कोई व्यक्ति अपनी आजीविका के लिये सिनेमा या दारू बार चलाता है, तो उसे कोई भी बैंक ॠण देने से मना नहीं कर सकती। जब केरल सरकार का एक उपक्रम “राज्य उद्योग निगम”, इस प्रकार की शरीयत आधारित बैंकिंग सिस्टम में पार्टनर बनने का इच्छुक है तब यह संविधान के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का भी उल्लंघन है। डॉ स्वामी के उपरोक्त तर्कों से यह सिद्ध होता है कि इस्लामिक बैंकिंग टाइप का “सिस्टम” पूरी तरह से भारत के संविधान और कानूनों के विरुद्ध है, और इस्लामिक बैंक खोलने के लिये इनमें बदलाव करना पड़ेगा। दिक्कत यह है कि केरल सरकार और वहाँ की विधानसभा इस प्रकार कानूनों में बदलाव नहीं कर सकती, क्योंकि वित्त, वाणिज्य और संस्थागत फ़ाइनेंस के किसी भी कानून अथवा संवैधानिक प्रावधानों में बदलाव सिर्फ़ संसद ही कर सकती है, और “सेकुलरिज़्म” के पुरोधाओं द्वारा इसके प्रयास भी शुरु हो चुके हैं, इस्लामिक बैंकिंग के पक्ष में सेमिनार आयोजित हो रहे हैं, RBI और SEBI में लॉबिंग शुरु हो चुकी है, राज्यसभा में इस पर बाकायदा बहस भी हो चुकी है…


अब देखते हैं कि “इस्लामिक बैंकिंग पद्धति” अव्यावहारिक और पाखण्डी क्यों है? कहा जाता है कि इस्लामिक बैंक कोई ब्याज न तो लेते हैं न ही देते हैं। फ़िर सवाल उठता है कि आखिर ये बैंक जीवित कैसे रहते हैं? दरअसल ये बैंक “पिछले दरवाजे” से ब्याज लेते हैं, अर्थात कान तो पकड़ते हैं, लेकिन सिर के पीछे से हाथ घुमाकर। मान लीजिये यदि आपको मकान खरीदने के लिये 10 लाख का लोन लेना है तो साधारण बैंक आपसे गारण्टी मनी लेकर ब्याज जोड़कर आपको 10 लाख का ॠण दे देगी, जबकि इस्लामिक बैंक वह मकान खुद खरीदेगी और आपको 15 लाख में बेच देगी और फ़िर 10-15 वर्षों की “बगैर ब्याज” की किस्तें बनाकर आपको दे देगी। इस तरह से वह बैंक पहले ही सम्पत्ति पर अपना लाभ कमा चुकी होगी और आप सोचेंगे कि आपको बगैर ब्याज का लोन मिल रहा है।

इस्लामिक विद्वान इस प्रकार की बैंकिंग की पुरज़ोर वकालत करते हैं, लेकिन निम्न सवालों के कोई संतोषजनक जवाब इनके पास नहीं हैं –

1) यदि बचत खातों पर ब्याज नहीं मिलेगा, तो वरिष्ट नागरिक जो अपना बुढ़ापा जीवन भर की पूंजी के ब्याज पर ही काटते हैं, उनका क्या होगा?

2) जब ब्याज नहीं लेते हैं तो बैंक के तमाम खर्चे, स्टाफ़ की पगार आदि कैसे निकाली जाती है?

3) “हलाल” कम्पनियों में इन्वेस्टमेंट करने और “हराम” कम्पनियों में इन्वेस्टमेंट करने सम्बन्धी निर्णय बैंक का “शरीयत सलाहकार बोर्ड” करेगा, तो यह सेकुलरिज़्म की कसौटी पर खरा कैसे हो गया?

4) दुबई के पेट्रोडालर वाले धन्ना सेठ इस्लामिक बैंकिंग का प्रयोग सोमालिया, अफ़गानिस्तान और चेचन्या में क्यों नहीं करते? जहाँ एक तरफ़ सोमालिया में इस्लामिक लुटेरे जहाजों को लूटते फ़िर रहे हैं और अफ़गानिस्तान में तालिबान की मेहरबानी से लड़कियों के स्कूल बरबाद हो चुके हैं और बच्चों को रोटी नसीब नहीं हो रही, वहाँ इस्लामिक बैंक क्यों नहीं खोलते?

5) पाकिस्तान जैसा भिखमंगा देश, जो हमेशा खुद की कनपटी पर पिस्तौल रखकर अमेरिका से डालर की भीख मांगता रहता है, वहाँ इस्लामिक बैंकिंग लागू करके खुशहाली क्यों नहीं लाते?


6) क्या यह सच नहीं है कि हाल ही में दुबई में आये “आर्थिक भूकम्प” के पीछे मुख्य कारण इस्लामिक बैंकिंग संस्थाओं का फ़ेल हो जाना था?

7) पहले से ही देश में दो कानून चल रहे हैं, क्या अब बैंकिंग और फ़ाइनेंस भी अलग-अलग होंगे? सरकार के इस कदम को, देश में (खासकर केरल में) इस्लामिक अलगाववाद के “टेस्टिंग चरण” (बीज) के रूप में क्यों न देखा जाये? यानी आगे चलकर इस्लामिक इंश्योरेंस, इस्लामिक रेल्वे, इस्लामिक एयरलाइंस भी आ सकती है?

अन्त में एक सबसे प्रमुख सवाल यह है कि, जब प्रमुख इस्लामिक देशों को अल्लाह ने पेट्रोल की नेमत बख्शी है और ज़मीन से तेल निकालने की लागत प्रति बैरल 10 डालर ही आती है, तब “अल्लाह के बन्दे” उसे 80 डालर प्रति बैरल (बीच में तो यह भाव 200 डालर तक पहुँच गया था) के मनमाने भाव पर क्यों बेचते हैं? क्या यह “अनैतिक मुनाफ़ाखोरी” नहीं है? इतना भारी मुनाफ़ा कमाते समय इस्लाम, हदीस, कुरान आदि की सलाहियतें और शरीयत कानून वगैरह कहाँ चला जाता है? और 10 डालर का तेल 80 डालर में बेचने पर सबसे अधिक प्रभावित कौन हो रहा है, पेट्रोल आयात करने वाले गरीब और विकासशील देश ही ना…? तब यह “हलाल” की कमाई कैसे हुई, यह तो साफ़-साफ़ “हराम” की कमाई है। ऐसे में विश्व भर में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जमाने भर को इस्लामिक बैंकिंग की बिना ब्याज वाली थ्योरी की पट्टी पढ़ाने वाले अरब देश क्यों नहीं 10 डालर की लागत वाला पेट्रोल 15 डालर में सभी को बेच देते, जिससे समूचे विश्व में अमन-शान्ति-भाईचारा बढ़े और गरीबी मिटे, भारत जैसे देश को पेट्रोल आयात में राहत मिले ताकि स्कूलों और अस्पतालों के लिये अधिक पैसा आबंटित किया जा सके? यदि वे ऐसा करते हैं तभी उन्हें “इस्लामिक बैंकिंग” के बारे में कुछ कहने का “नैतिक हक” बनता है, वरना तो यह कोरी लफ़्फ़ाजी ही है।

वर्तमान में देश में तीन वित्त विशेषज्ञ प्रमुख पदों पर हैं, मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और चिदम्बरम, फ़िर क्यों ये लोग इस प्रकार की अव्यावहारिक अवधारणा का विरोध नहीं कर रहे? क्या इन्हें दिखाई नहीं दे रहा कि इस्लामिक बैंकिंग का चुग्गा डालकर धर्मान्तरण के लिये गरीबों को फ़ँसाया जा सकता है? क्या यह नहीं दिखता कि अल-कायदा, तालिबान और अन्य आतंकवादी नेटवर्कों तथा स्लीपर सेल्स के लिये आधिकारिक रुप से पैसा भारत भेजा जा सकता है? बार-बार कई मुद्दों पर विभिन्न हाईकोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में “लताड़” खाने के बावजूद क्यों कांग्रेसी और वामपंथी अपनी हरकतों से बाज नहीं आते?

सभी को, सब कुछ पता है लेकिन मुस्लिम वोट बैंक की पट्टी, आँखों पर ऐसी बँधी है कि उसके आगे “देशहित” चूल्हे में चला जाता है। भाजपा भी “पोलिटिकली करेक्ट” होने की दयनीय दशा को प्राप्त हो रही है, वरना क्या कारण है कि जो काम अरुण जेटली और रविशंकर प्रसाद को करना चाहिये था उसे डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी को करना पड़ रहा है? जब रुपये-पैसों से मालामाल लेकिन “मानसिक रूप से दो कौड़ी की औकात” रखने वाले विभिन्न NGOs घटिया से घटिया मुद्दों पर जनहित याचिकाओं और मुकदमों की बाढ़ ला देते हैं तो भाजपा के कानूनी सेल को जंग क्यों लगा हुआ है, क्यों नहीं भाजपा भी देशहित से सम्बन्धित मुद्दों को लगातार उठाकर सम्बन्धित पक्षों को न्यायालयों में घसीटती? MF हुसैन नामक “कनखजूरे” को न्यायालयों में मुकदमे लगा-लगाकर ही तो देश से भगाया था, फ़िर भाजपा राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों पर इतना शर्माती क्यों है? डॉ स्वामी से प्रेरणा लेकर ऐसे मामलों में मुकदमे क्यों नहीं ठोकती? अकेले डॉ स्वामी ने ही, कांची कामकोटि शंकराचार्य के अपमान और रामसेतु को तोड़ने के मुद्दे पर विभिन्न न्यायालयों में सरकार की नाक में दम कर रखा है, फ़िर भी भाजपा को अक्ल नहीं आ रही। भाजपा क्यों नहीं समझ रही कि, चाहे वह मुसलमानों के साथ “हमबिस्तर” हो ले, फ़िर भी उसे मुस्लिमों के वोट नहीं मिलने वाले…

बहरहाल, डॉ स्वामी की बदौलत, इस्लामिक बैंकिंग की इस बकवास पर कोर्ट की अस्थायी ही सही फ़िलहाल रोक तो लगी है… यदि केन्द्र सरकार संसद में कानून ही बदलवा दे तो कुछ कहा नहीं जा सकता, क्योंकि “भले आदमी”(?) और “विश्व के सबसे अधिक पढ़े-लिखे प्रधानमंत्री” पहले ही कह चुके हैं… “देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…” क्योंकि हिन्दू तो…




(अभिषेक अन्ना सारस्वत)