Thursday, September 29, 2011
अथ 2जी स्पेक्ट्रम कथा भाग 2
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि किस तरह दयानिधि मारन ने, प्रधानमंत्री और GoM के अन्य सदस्यों की जानकारी में भिन्न-भिन्न तरह से नियमों को तोड़ा-मरोड़ा और अपनी पसंदीदा कम्पनी के पक्ष में मोड़ा, परन्तु प्रधानमंत्री ने कोई आपत्ति नहीं की -
(चित्र फ़ाइल पेज 647)
उप-बिन्दु (3) - (iii) वर्तमान परिस्थिति में जबकि UASL लाइसेंस हेतु 575 आवेदन प्राप्त किये जा चुके हैं, तथा TRAI (दूरसंचार नियामक) द्वारा अनुशंसा की गई है कि आवेदनों की संख्या पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई जाये, ऐसे में पैराग्राफ़ 13 के दिशानिर्देशों पर गौर किया जाए। परन्तु माननीय संचार-तकनीकी मंत्री ने 25/09/2007 से पहले आवेदन कर चुकी “पात्र आवेदक कम्पनियो” को पहले ही सहमति-पत्र जारी करने सम्बन्धी यह निर्णय ले लिया है। जबकि वर्तमान परिदृश्य में बड़ी संख्या में आवेदन लंबित हैं एवं उन कम्पनियों की वैधता तथा योग्यता की जाँच-परख अभी बाकी है। संभवतः माननीय संचार मंत्री महोदय ने यह तय कर लिया है कि आवेदक कम्पनी की योग्यता जाँच, आवेदन की दिनांक के अनुसार की जाए।
दिनांक 14 दिसम्बर 2005 की UASL लाइसेंस की गाइडलाइन (पैराग्राफ़ 6) के अनुसार लाइसेंस प्राप्ति हेतु एण्ट्री फ़ीस (जो कि वापसी-योग्य नहीं होगी), सेवा क्षेत्र की कैटेगरी, FBG, PBG, कम्पनी की नेटवर्थ तथा शेयरों का इक्विटी कैपिटल, सभी सेवा प्रदाता क्षेत्रों के लिये आवश्यक है (संलग्नक-1 के अनुसार)। प्रत्येक सेवा प्रदाता क्षेत्र लाइसेंस के लिए एण्ट्री फ़ीस, FBG, PBG, नेटवर्थ की गणना उस सेवा क्षेत्र की कैटेगरी पर निर्भर करेगी, जिसके लिए लाइसेंस दिया गया है…
गत पृष्ठ से जारी… माननीय MoC&IT मंत्री महोदय के निर्देशों के अनुरूप इसे पुनः निरीक्षण किया जाए…
संशोधित प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी गई है। संशोधित विज्ञप्ति में अन्तिम पैराग्राफ़ विलोपित कर दिया गया है, जो कि इस प्रकार है – “हालांकि यदि एक से अधिक आवेदक कम्पनी सहमति-पत्रों की शर्तों पर उस दिनांक पर खरी उतरती है, तब भी प्राथमिकता के आधार पर आवेदन करने वाली कम्पनी की तारीख के आधार पर निर्णय किया जाएगा…”
आगे जैसे-जैसे मंत्रालय के अफ़सरों के नोट के कागज़ात RTI के जरिये सामने आएंगे, तस्वीर और साफ़ हो जाएगी…। फ़िलहाल तो जाहिर है कि कई फ़ाइलों की नोटिंग तथा राजा-मारन के साथ हुई कई बैठकों, चर्चाओं के बारे में प्रधानमंत्री से लेकर अन्य सभी मंत्रियों को सब कुछ जानकारी थी, फ़िर भी कुछ नहीं किया गया…
दूरसंचार विभाग द्वारा एक जनहित याचिका के जवाब में 11 नवम्बर 2010 को उच्चतम न्यायालय में दाखिल किये गये हलफ़नामे में कई विरोधाभासी तथ्य उभरकर सामने आते हैं। वित्त सचिव तथा दूरसंचार सचिव के बीच दिनांक 22 नवम्बर एवं 29 नवम्बर 2007 के आपसी पत्रों, जस्टिस शिवराज पाटिल की रिपोर्ट, तथा सबसे महत्वपूर्ण यह कि 16 नवम्बर 2010 को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की जाँच में वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के कथन कि वित्त मंत्रालय और दूरसंचार विभाग के बीच ऐसी कोई सहमति नहीं बनी थी कि सन 2007 में लाइसेंस देते समय सन 2001 की स्पेक्ट्रम कीमतों पर ही लाइसेंस दिये जाएं।
1) प्रधानमंत्री अपनी जवाबदेही से कैसे भाग सकते हैं, खासकर तब जबकि ए राजा ने कई गम्भीर अनियमितताएं एवं गैरकानूनी कार्य उस दौरान किये, जैसे –
ब) TRAI एवं प्रधानमंत्री द्वारा राजस्व नुकसान से बचने के लिए बाजार मूल्य पर लाइसेंस की नीलामी के स्पष्ट निर्देशों की अवहेलना की गई।
(स) कानून मंत्रालय की सलाह थी कि इस मामले को प्रधानमंत्री द्वारा गठित मंत्रियों की विशेष समिति में ही सुलझाया जाए, इसकी भी जानबूझकर अवहेलना की गई।
(द) TRAI ने लाइसेंस आवेदनकर्ताओं की संख्या पर कोई बन्धन नहीं रखने की बात कही थी, परन्तु ए राजा ने चालबाजी से 575 आवेदनकर्ताओं में से सिर्फ़ 121 को ही लाइसेंस आवेदन करने दिया, क्योंकि राजा द्वारा आवेदन की अन्तिम तारीख को 1 अक्टूबर 2007 से घटाकर अचानक 25 सितम्बर 2007 कर दिया गया था।
(इ) ए राजा द्वारा FCFS की मनमानी व्याख्या एवं नियमावली की गई ताकि चुनिंदा विशेष कम्पनियों को ही फ़ायदा पहुँचाया जा सके।
इस में से शुरुआती चार बिन्दुओं का उल्लेख 2 नवम्बर 2007 को ए राजा द्वारा प्रधानमंत्री को लिखे गए पत्र से ही साफ़ हो जाते हैं, जबकि अन्तिम बिन्दु की अनियमितता अर्थात FCFS की मनमानी व्याख्या ए राजा के 26 दिसम्बर 2007 के पत्र में स्पष्ट हो जाती है।
यदि प्रधानमंत्री अपनी बात पर कायम हैं, कि दूरसंचार विभाग और वित्त मंत्रालय स्पेक्ट्रम कीमतों को लेकर आपस में राजी थे तब तो तत्कालीन वित्त मंत्री पी चिदम्बरम भी, भारत सरकार को हुए राजस्व के नुकसान में बराबर के भागीदार माने जाएंगे। साथ ही इस बात की सफ़ाई प्रधानमंत्री कैसे दे सकेंगे कि वित्त सचिव के पत्र के अनुसार, 29 मई 2007 को ए राजा तथा वित्त मंत्री की मुलाकात हुई थी, जिसमें स्पेक्ट्रम की दरों पर चर्चा की गई (जबकि इन दोनों मंत्रियों की इस बैठक का कोई आधिकारिक दस्तावेज नहीं है)।
जबकि दूसरी तरफ़ – रिकॉर्ड के अनुसार CAG रिपोर्ट, जस्टिस पाटिल की रिपोर्ट, दूरसंचार विभाग के हलफ़नामे इत्यादि के अनुसार, यदि पी चिदम्बरम और वित्त मंत्रालय स्पेक्ट्रम की दरों को लेकर DoT से कभी सहमत नहीं थे और उनके बीच कोई समझौता नहीं हुआ था, तब इस मामले में स्पष्टतः प्रधानमंत्री देश के समक्ष झूठ बोल रहे हैं उन्हें इस बात का जवाब देना होगा कि ऐसा उन्होंने क्यों किया?
राजा की सभी कार्रवाइयों, अर्थात् कट-ऑफ तिथि को आगे बढ़ाना, इस मामले में ईजीओएम को पुनः संदर्भित करने के विधि मंत्री के अनुरोध को खारिज करना, नीलामी की बात को अस्वीकार करना, और यह जानते हुए भी कि 575 आवेदनों को देने के लिए पर्याप्त स्पेक्ट्रम उपलब्ध नहीं है, फिर भी ट्राई की नो कैप अनुशंसा को क्रियान्वित करने का दिखावा करना, इत्यादि गंभीर बातों से प्रधानमंत्री पूरी तरह से परिचित थे। हालिया नए साक्ष्य कहते हैं कि जनवरी/फरवरी 2006 में मारन के साथ हुई बातचीत के बाद प्रधानमंत्री ने 23 फरवरी 2006 को कैबिनेट सचिवालय को स्पेक्ट्रम मूल्य-निर्धारणों का ध्यान रखते हुए संदर्भ के शर्तों को जारी करने का निर्देश दिया।
कुल मिलाकर चाहे जो भी स्थितियाँ हों, इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री अच्छी तरह से जानते थे कि ए राजा क्या कारनामे कर रहे हैं, क्योंकि ए राजा ने अपने पत्रों में प्रधानमंत्री को सभी कुछ स्पष्ट कर दिया था, तथा राजा द्वारा सभी गैरकानूनी कार्य 10 जनवरी 2008 से पहले ही निपटा लिये गये थे…। प्रधानमंत्री को सब कुछ पता था, लेकिन उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की…
Wednesday, September 28, 2011
Tuesday, September 27, 2011
अथ 2जी स्पेक्ट्रम कथा भाग 1
2जी लाइसेंस देने की प्रक्रिया की शुरुआत से लेकर अन्त तक दयानिधि मारन ने जितनी भी अनियमितताएं और मनमानी कीं उसमें प्रधानमंत्री की पूर्ण सहमति, जानकारी और मदद शामिल है, ऐसे में प्रधानमंत्री स्वयं को बेकसूर और अनजान बताते हैं तो यह बात गले उतरने वाली नहीं है।
अथ 2G कथा भाग-1 प्रारंभ…
हमारे अब तक के सबसे "ईमानदार" कहे जाने वाले अनर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्सर भ्रष्टाचार का मामला उजागर होने के बाद या तो साफ़-साफ़ अपना पल्ला झाड़कर अलग हो जाते हैं, अथवा उनके "भाण्ड" टाइप के अखबार और पत्रिकाएं, उन्हें "ईमानदार" होने का तमगा तड़ातड़ बाँटने लगते हैं। प्रधानमंत्री स्वयं भी खुद को भ्रष्टाचार के ऐसे "टुटपूंजिये" मामलों से बहुत ऊपर समझते हैं, वे अपने-आप को "अलिप्त" और "पवित्र" बताने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने देते…। उनका "सीजर की पत्नी" वाला चर्चित बयान तो अब एक मखौल सा लगता है, खासकर उस स्थिति में जबकि लोकतन्त्र में जिम्मेदारी "कप्तान" की होती है। जिस प्रकार रेल दुर्घटना के लिए रेल मंत्री या कोई वरिष्ठ अधिकारी ही अपने निकम्मेपन के लिए कोसा जाता है। उसी प्रकार जब पूरे देश में चौतरफ़ा लूट चल रही हो, नित नये मामले सामने आ रहे हों, ऐसे में "सीजर की पत्नी" निर्लिप्त नहीं रह सकती न ही उसे बेगुनाह माना जा सकता है। मनमोहन सिंह को अपनी जिम्मेदारी निभानी ही चाहिए, परन्तु ऐसा नहीं हो रहा। यदि डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी और सुप्रीम कोर्ट सतत सक्रिय न रहें और निगरानी न बनाए रखते, तो 2G वाला मामला भी बोफ़ोर्स और हसन अली जैसा हश्र पाता…
और अब तो जैसे-जैसे नए-नए सबूत सामने आ रहे हैं, उससे साफ़ नज़र आ रहा है कि प्रधानमंत्री जी इतने "भोले, मासूम और ईमानदार" भी नहीं हैं जितने वे दिखने की कोशिश करते हैं। दूरसंचार मंत्री रहते दयानिधि मारन ने अपने कार्यकाल में जो गुलगपाड़े किये उनकी पूरी जानकारी मनमोहन सिंह को थी, इसी प्रकार ए राजा (जो कि शुरु से कह रहा है कि उसने जो भी किया चिदम्बरम और मनमोहन सिंह की पूर्ण जानकारी में किया) से सम्बन्धित दस्तावेज और अफ़सरों की फ़ाइल नोटिंग दर्शाती है कि मनमोहन सिंह न सिर्फ़ सब जानते थे, बल्कि उन्होंने अपनी तरफ़ से इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया (हालांकि मामला उजागर होने के बाद भी वे कौन सा तीर मार रहे हैं?)। 2जी घोटाला (2G spectrum scam) उजागर होने के बावजूद प्रधानमंत्री द्वारा ए. राजा की पीठ सरेआम थपथपाते इस देश के लोगों ने टीवी पर देखा है…।
और अब तो जैसे-जैसे नए-नए सबूत सामने आ रहे हैं, उससे साफ़ नज़र आ रहा है कि प्रधानमंत्री जी इतने "भोले, मासूम और ईमानदार" भी नहीं हैं जितने वे दिखने की कोशिश करते हैं। दूरसंचार मंत्री रहते दयानिधि मारन ने अपने कार्यकाल में जो गुलगपाड़े किये उनकी पूरी जानकारी मनमोहन सिंह को थी, इसी प्रकार ए राजा (जो कि शुरु से कह रहा है कि उसने जो भी किया चिदम्बरम और मनमोहन सिंह की पूर्ण जानकारी में किया) से सम्बन्धित दस्तावेज और अफ़सरों की फ़ाइल नोटिंग दर्शाती है कि मनमोहन सिंह न सिर्फ़ सब जानते थे, बल्कि उन्होंने अपनी तरफ़ से इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया (हालांकि मामला उजागर होने के बाद भी वे कौन सा तीर मार रहे हैं?)। 2जी घोटाला (2G spectrum scam) उजागर होने के बावजूद प्रधानमंत्री द्वारा ए. राजा की पीठ सरेआम थपथपाते इस देश के लोगों ने टीवी पर देखा है…।
इस बात के पर्याप्त तथ्य और सबूत हैं कि ए राजा के मामले के उलट, जहाँ कि प्रधानमंत्री और राजा के बीच पत्र व्यवहार हुए और फ़िर भी राजा ने प्रधानमंत्री की सत्ता को अंगूठा दिखाते हुए 2G स्पेक्ट्रम मनमाने तरीके से बेच डाले… दयानिधि मारन के मामले में तो स्वयं प्रधानमंत्री ने इस आर्थिक अनियमितता में मारन का साथ दिया, बल्कि स्पेक्ट्रम खरीद प्रक्रिया में मैक्सिस को लाने और उसके पक्ष में माहौल खड़ा करने के लिये नियमों की तोड़मरोड़ की, कृत्रिम तरीके से स्पेक्ट्रम की दरें कम रखी गईं, फ़िर मैक्सिस कम्पनी को लाइसेंस मिल जाने तक प्रक्रिया को जानबूझकर विकृत किया गया। बिन्दु-दर-बिन्दु देखिए ताकि आपको आसानी से समझ में आए, देश को चूना कैसे लगाया जाता है…
1) दयानिधि मारन ने डिशनेट कम्पनी के सात लाइसेंस आवेदनों की प्रक्रिया रोके रखी –
दयानिधि मारन ने डिशनेट कम्पनी द्वारा प्रस्तुत लाइसेंस आवेदनों पर ढाई साल तक कोई प्रक्रिया ही नहीं शुरु की, कम्पनी से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछ-पूछ कर फ़ाइल अटकाये रखी, यह बात शिवराज समिति की रिपोर्ट में भी शामिल है। मारन ने शिवशंकरन को इतना परेशान किया कि उसने कम्पनी में अपना हिस्सा बेच डाला।
2) मैक्सिस कम्पनी को आगे लाने हेतु विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई –
मैक्सिस कम्पनी को लाइसेंस पाने की दौड़ में आगे लाने हेतु दयानिधि मारन ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ा दिया, यह कार्रवाई कैबिनेट की बैठक में 3 नवम्बर 2005 के प्रस्ताव एवं नोटिफ़िकेशन के अनुसार की गई जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं शामिल थे और उनकी भी इसमें सहमति थी।
3) मैक्सिस के लिये UAS लाइसेंस गाइडलाइन को बदला गया –
मारन ने मैक्सिस कम्पनी को फ़ायदा पहुँचाने के लिये लाइसेंस शर्तों की गाइडलाइन में भी मनमाना फ़ेरबदल कर दिया। मारन ने नई गाइडलाइन जारी करते हुए यह शर्त रखी कि 14 दिसम्बर 2005 को भी 2001 के स्पेक्ट्रम भाव मान्य किये जाएंगे (जबकि इस प्रकार लाइसेंस की शर्तों को उसी समय बदला जा सकता है कि धारा 11(1) के तहत TRAI से पूर्व अनुमति ले ली जाए)। दयानिधि मारन ने इन शर्तों की बदली सिर्फ़ एक सरकारी विज्ञापन देकर कर डाली। इस बात को पूरी कैबिनेट एवं प्रधानमंत्री जानते थे।
इस कवायद का सबसे अधिक और एकमात्र फ़ायदा मैक्सिस कम्पनी को मिला, जिसने दिसम्बर 2006 में ही 14 नवीन सर्कलों में UAS लाइसेंस प्राप्त किये थे।
4) मैक्सिस कम्पनी ने शिवशंकरन को डिशनेट कम्पनी से खरीद लिया था, और इस बात का उल्लेख और सबूत सीबीआई के कई दस्तावेजों में है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जा चुका है।
5) 11 जनवरी 2006 को जैसे ही मैक्सिस कम्पनी ने डिशनेट को खरीद लिया, मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा जिसमें मंत्रियों के समूह के गठन की मांग की गई ताकि एयरसेल को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटित किया जा सके। मारन को पता चल गया था कि वह कम्पनी को लाइसेंस दे सकते हैं, लेकिन उन्हें स्पेक्ट्रम नहीं मिलेगा। दयानिधि मारन को पक्का पता था कि स्पेक्ट्रम उस समय सेना के पास था, तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का प्रभार होने के कारण दयानिधि मारन लाइसेंस के आवेदनों को ढाई वर्ष तक लटका कर रखे रहे, लेकिन जैसे ही मैक्सिस कम्पनी ने डिशनेट को खरीद लिया तो सिर्फ़ दो सप्ताह के अन्दर ही लाइसेंस जारी कर दिये गये। साफ़ है कि इस बारे में प्रधानमंत्री सब कुछ जानते थे, क्योंकि सभी पत्र व्यवहार प्रधानमंत्री को सम्बोधित करके ही लिखे गए हैं।
6) मारन ने मैक्सिस कम्पनी को “A” कैटेगरी सर्कल में चार अतिरिक्त लाइसेंस लेने हेतु प्रोत्साहित किया। मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा उसके अगले दिन ही यानी 12 जनवरी 2006 को मैक्सिस (डिशनेट) ने “ए” कैटेगरी के सर्कलों के लिए 4 आवेदन डाल दिये, जबकि उस समय कम्पनी के सात आवेदन पहले से ही लम्बित थे। इस प्रकार कुल मिलाकर मैक्सिस कम्पनी के 11 लाइसेंस आवेदन हो गये।
7) 1 फ़रवरी 2006 को दयानिधि मारन स्वयं प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिले, ताकि मंत्री समूह में उनके एजेण्डे पर जल्दी चर्चा हो।
8) प्रधानमंत्री ने मंत्री समूह को चर्चा हेतु सन्दर्भ शर्तों (Terms of Reference) की घोषणा की तथा उन्हें स्पेक्ट्रम की दरों पर पुनर्विचार करने की घोषणा की –
11 जनवरी 2006 के पत्र एवं 1 फ़रवरी 2006 की व्यक्तिगत मुलाकात के बाद 23 फ़रवरी 2006 को प्रधानमंत्री ने स्पेक्ट्रम की दरों को तय करने के लिए मंत्री समूह के गठन की घोषणा की, जो कि कुल छः भाग में थी। इस ToR की शर्त 3(e) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि, “मंत्री समूह स्पेक्ट्रम की दरों सम्बन्धी नीति की जाँच करे एवं एक स्पेक्ट्रम आवंटन फ़ण्ड का गठन किया जाए। मंत्री समूह से स्पेक्ट्रम बेचने, उस फ़ण्ड के संचालन एवं इस प्रक्रिया में लगने वाले संसाधनों की गाइडलाइन तय करने के भी निर्देश दिये। इस प्रकार यह सभी ToR दयानिधि मारन की इच्छाओं के विपरीत जा रही थीं, क्योंकि दयानिधि पहले ही 14 दिसम्बर 2005 को UAS लाइसेंस की गाइडलाइनों की घोषणा कर चुके थे (जो कि गैरकानूनी थी)। मारन चाहते थे कि UAS लाइसेंस को सन 2001 की दरों पर (यानी 22 सर्कलों के लिये सिर्फ़ 1658 करोड़) बेच दिया जाए।
दयानिधि मारन ने डिशनेट कम्पनी द्वारा प्रस्तुत लाइसेंस आवेदनों पर ढाई साल तक कोई प्रक्रिया ही नहीं शुरु की, कम्पनी से विभिन्न प्रकार के प्रश्न पूछ-पूछ कर फ़ाइल अटकाये रखी, यह बात शिवराज समिति की रिपोर्ट में भी शामिल है। मारन ने शिवशंकरन को इतना परेशान किया कि उसने कम्पनी में अपना हिस्सा बेच डाला।
2) मैक्सिस कम्पनी को आगे लाने हेतु विदेशी निवेश की सीमा बढ़ाई –
मैक्सिस कम्पनी को लाइसेंस पाने की दौड़ में आगे लाने हेतु दयानिधि मारन ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की सीमा को बढ़ा दिया, यह कार्रवाई कैबिनेट की बैठक में 3 नवम्बर 2005 के प्रस्ताव एवं नोटिफ़िकेशन के अनुसार की गई जिसमें प्रधानमंत्री स्वयं शामिल थे और उनकी भी इसमें सहमति थी।
3) मैक्सिस के लिये UAS लाइसेंस गाइडलाइन को बदला गया –
मारन ने मैक्सिस कम्पनी को फ़ायदा पहुँचाने के लिये लाइसेंस शर्तों की गाइडलाइन में भी मनमाना फ़ेरबदल कर दिया। मारन ने नई गाइडलाइन जारी करते हुए यह शर्त रखी कि 14 दिसम्बर 2005 को भी 2001 के स्पेक्ट्रम भाव मान्य किये जाएंगे (जबकि इस प्रकार लाइसेंस की शर्तों को उसी समय बदला जा सकता है कि धारा 11(1) के तहत TRAI से पूर्व अनुमति ले ली जाए)। दयानिधि मारन ने इन शर्तों की बदली सिर्फ़ एक सरकारी विज्ञापन देकर कर डाली। इस बात को पूरी कैबिनेट एवं प्रधानमंत्री जानते थे।
इस कवायद का सबसे अधिक और एकमात्र फ़ायदा मैक्सिस कम्पनी को मिला, जिसने दिसम्बर 2006 में ही 14 नवीन सर्कलों में UAS लाइसेंस प्राप्त किये थे।
4) मैक्सिस कम्पनी ने शिवशंकरन को डिशनेट कम्पनी से खरीद लिया था, और इस बात का उल्लेख और सबूत सीबीआई के कई दस्तावेजों में है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में पेश किया जा चुका है।
5) 11 जनवरी 2006 को जैसे ही मैक्सिस कम्पनी ने डिशनेट को खरीद लिया, मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा जिसमें मंत्रियों के समूह के गठन की मांग की गई ताकि एयरसेल को अतिरिक्त स्पेक्ट्रम आवंटित किया जा सके। मारन को पता चल गया था कि वह कम्पनी को लाइसेंस दे सकते हैं, लेकिन उन्हें स्पेक्ट्रम नहीं मिलेगा। दयानिधि मारन को पक्का पता था कि स्पेक्ट्रम उस समय सेना के पास था, तकनीकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय का प्रभार होने के कारण दयानिधि मारन लाइसेंस के आवेदनों को ढाई वर्ष तक लटका कर रखे रहे, लेकिन जैसे ही मैक्सिस कम्पनी ने डिशनेट को खरीद लिया तो सिर्फ़ दो सप्ताह के अन्दर ही लाइसेंस जारी कर दिये गये। साफ़ है कि इस बारे में प्रधानमंत्री सब कुछ जानते थे, क्योंकि सभी पत्र व्यवहार प्रधानमंत्री को सम्बोधित करके ही लिखे गए हैं।
6) मारन ने मैक्सिस कम्पनी को “A” कैटेगरी सर्कल में चार अतिरिक्त लाइसेंस लेने हेतु प्रोत्साहित किया। मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा उसके अगले दिन ही यानी 12 जनवरी 2006 को मैक्सिस (डिशनेट) ने “ए” कैटेगरी के सर्कलों के लिए 4 आवेदन डाल दिये, जबकि उस समय कम्पनी के सात आवेदन पहले से ही लम्बित थे। इस प्रकार कुल मिलाकर मैक्सिस कम्पनी के 11 लाइसेंस आवेदन हो गये।
7) 1 फ़रवरी 2006 को दयानिधि मारन स्वयं प्रधानमंत्री से व्यक्तिगत रूप से मिले, ताकि मंत्री समूह में उनके एजेण्डे पर जल्दी चर्चा हो।
8) प्रधानमंत्री ने मंत्री समूह को चर्चा हेतु सन्दर्भ शर्तों (Terms of Reference) की घोषणा की तथा उन्हें स्पेक्ट्रम की दरों पर पुनर्विचार करने की घोषणा की –
11 जनवरी 2006 के पत्र एवं 1 फ़रवरी 2006 की व्यक्तिगत मुलाकात के बाद 23 फ़रवरी 2006 को प्रधानमंत्री ने स्पेक्ट्रम की दरों को तय करने के लिए मंत्री समूह के गठन की घोषणा की, जो कि कुल छः भाग में थी। इस ToR की शर्त 3(e) में इस बात का उल्लेख किया गया है कि, “मंत्री समूह स्पेक्ट्रम की दरों सम्बन्धी नीति की जाँच करे एवं एक स्पेक्ट्रम आवंटन फ़ण्ड का गठन किया जाए। मंत्री समूह से स्पेक्ट्रम बेचने, उस फ़ण्ड के संचालन एवं इस प्रक्रिया में लगने वाले संसाधनों की गाइडलाइन तय करने के भी निर्देश दिये। इस प्रकार यह सभी ToR दयानिधि मारन की इच्छाओं के विपरीत जा रही थीं, क्योंकि दयानिधि पहले ही 14 दिसम्बर 2005 को UAS लाइसेंस की गाइडलाइनों की घोषणा कर चुके थे (जो कि गैरकानूनी थी)। मारन चाहते थे कि UAS लाइसेंस को सन 2001 की दरों पर (यानी 22 सर्कलों के लिये सिर्फ़ 1658 करोड़) बेच दिया जाए।
9) अपना खेल बिगड़ता देखकर मारन ने प्रधानमंत्री को तत्काल एक पत्र लिख मारा जिसमें उनसे ToR (Terms of References) की शर्तों के बारे में तथा ToR के नये ड्राफ़्ट के बारे में सवाल किये। प्रधानमंत्री और अपने बीच हुई बैठक में तय की गई बातों और ToR की शर्तों में अन्तर आता देखकर मारन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर पूछा कि – “माननीय प्रधानमंत्री जी, आपने मुझे आश्वासन दिया था कि ToR की शर्तें ठीक वही रहेंगी जो हमारे बीच हुई बैठक में तय की गई थीं, परन्तु मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ है कि जो मंत्री समूह इस पर गठित किया गया है वह अन्य कई विस्तारित शर्तों पर भी विचार करेगा। मेरे अनुसार सामान्यतः यह कार्य इसी मंत्रालय द्वारा ही किया जाता है…”। आगे दयानिधि मारन सीधे-सीधे प्रधानमंत्री को निर्देश देते लगते हैं, “कृपया सभी सम्बद्ध मंत्रियों एवं पक्षों को यह निर्देशित करें कि जो ToR “हमने” तय की थीं (जो कि साथ में संलग्न हैं) उन्हीं को नए सिरे से नवीनीकृत करें…”। दयानिधि मारन ने जो ToR तैयार की, उसमें सिर्फ़ चार भाग थे, जबकि मूल ToR में छः भाग थे, इसमें दयानिधि मारन ने नई ToR भी जोड़ दी, “डिजिटल क्षेत्रीय प्रसारण हेतु स्पेक्ट्रम की अतिरिक्त जगह खाली रखना…”। असल में यह शर्त और इस प्रकार का ToR बनाना दूरसंचार मंत्रालय का कार्यक्षेत्र ही नहीं है एवं यह शर्त सीधे-सीधे कलानिधि मारन के “सन टीवी” को फ़ायदा पहुँचाने हेतु थी। परन्तु इस ToR की मनमानी शर्तों और नई शर्त जोड़ने पर प्रधानमंत्री ने कोई आपत्ति नहीं उठाई, जो सन टीवी को सीधे फ़ायदा पहुँचाती थी। अन्ततः सभी ToR प्रधानमंत्री की अनुमति से ही जारी की गईं, प्रधानमंत्री इस बारे में सब कुछ जानते थे कि दयानिधि मारन “क्या गुल खिलाने” जा रहे हैं।
10) विदेशी निवेश बोर्ड (FIPB) द्वारा मैक्सिस कम्पनी की 74% भागीदारी को हरी झण्डी दी -मार्च-अप्रैल 2006 में मैक्सिस कम्पनी में 74% सीधे विदेशी निवेश की अनुमति को FIPB द्वारा हरी झण्डी दे दी गई। इसका साफ़ मतलब यह है कि न सिर्फ़ वाणिज्य मंत्री इस 74% विदेशी निवेश के बारे में जानते थे, बल्कि गृह मंत्रालय भी इस बारे में जानता था, क्योंकि उनकी अनुमति के बगैर ऐसा हो नहीं सकता था। ज़ा�����िर है कि इस प्रकार की संवेदनशील और महत्वपूर्ण जानकारी प्रधानमंत्री सहित कैबिनेट के कई मंत्रियों को पता चल गई थी। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस तथ्य की कभी भी पड़ताल अथवा सवाल करने की कोशिश नहीं की गई कि मैक्सिस कम्पनी 99% विदेशी निवेश की कम्पनी थी, 74% विदेशी निवेश तो सिर्फ़ एक धोखा था क्योंकि बचे हुए 26% निवेश में सिर्फ़ “नाम के लिए” अपोलो कम्पनी के रेड्डी का नाम था। यह जानकारी समूची प्रशासनिक मशीनरी, मंत्रालय एवं सुरक्षा सम्बन्धी हलकों को थी, परन्तु प्रधानमंत्री ने इस गम्भीर खामी की ओर उंगली तक नहीं उठाई, क्यों?
11) अप्रैल से नवम्बर 2006 तक कोई कदम नहीं उठाया –
दयानिधि मारन चाहते तो 14 दिसम्बर 2005 की UAS लाइसेंस गाइडलाइन के आधार पर आसानी से मैक्सिस कम्पनी के सभी 14 लाइसेंस आवेदनों को मंजूरी दे सकते थे, परन्तु उन्होंने ऐसा जानबूझकर नहीं किया, क्योंकि ToR की शर्तों में “स्पेक्ट्रम की दरों का पुनरीक्षण होगा” भी शामिल थी। FIPB की विदेशी निवेश मंजूरी के बाद भी दयानिधि मारन ने लाइसेंस आवेदनों को रोक कर रखा। साफ़ बात है कि इन 8 महीनों में प्रधानमंत्री कार्यालय पर जमकर दबाव बनाया गया जो कि हमें नवम्बर 2006 के बाद हुई तमाम घटनाओं में साफ़ नज़र आता है।
12) दयानिधि मारन ने ToR की शर्तों का नया ड्राफ़्ट पेश किया –
16 नवम्बर 2006 को दयानिधि मारन ने अवसर का लाभ उठाते हुए मंत्री समूह के समक्ष एक नया ToR शर्तों का ड्राफ़्ट पेश किया, जिसमें स्पेक्ट्रम की कीमतों के पुनरीक्षण वाली शर्त हटाकर क्षेत्रीय डिजिटल प्रसारण वाली शर्त जोड़ दी। इस प्रकार यह ToR वापस पुनः उसी स्थिति में पहुँच गई जहाँ वह 28 फ़रवरी 2006 को थी। ज़ाहिर है कि ToR की इन नई शर्तों और नये ड्राफ़्ट की जानकारी प्रधानमंत्री को थी, क्योंकि ToR की यह शर्तें प्रधानमंत्री की अनुमति के बिना बदली ही नहीं जा सकती थीं।
13) इस बीच दयानिधि मारन ने अचानक जल्दबाजी दिखाते हुए 21 नवम्बर 2006 को मैक्सिस कम्पनी के लिये सात Letter of Intent (LoI) जारी कर दिये, क्योंकि मारन को पता था कि ToR की नई शर्तें जो कि 16 नवम्बर 2006 को नये ड्राफ़्ट में प्रधानमंत्री और मंत्री समूह को पेश की गई हैं, वह मंजूर हो ही जाएंगी। मैक्सिस कम्पनी के बारे में यह सूचना प्रेस और आम जनता को हो गई थी, परन्तु प्रधानमंत्री ने कुछ नहीं किया।
14) दयानिधि मारन ने 29 नवम्बर 2006 को (यानी ठीक आठ दिन बाद ही) मैक्सिस कम्पनी को बचे हुए सात लाइसेंस आवेदनों पर LoI जारी कर दिया।
15) 5 दिसम्बर 2006 को मारन ने मैक्सिस को सन 2001 के भाव में सात लाइसेंस भी जारी कर दिये, क्योंकि मारन अच्छी तरह जानते थे कि मंत्री समूह अब ToR की नई शर्तों पर विचार अथवा स्पेक्ट्रम की दरों का पुनरीक्षण करने वाला नहीं है। मारन को स्वयं के बनाये हुए फ़रवरी और नवम्बर 2006 में पेश किये गये दोनों ड्राफ़्टों को ही मंजूरी मिलने का पूरा विश्वास पहले से ही था, और ऐसा प्रधानमंत्री के ठोस आश्वासन के बिना नहीं हो सकता था।
बहरहाल, इतने घोटालों, महंगाई, आतंकवाद और भ्रष्टाचार के बावजूद पिछले 7 साल में हमारे माननीय प्रधानमंत्री सिर्फ़ एक बार "आहत"(?) हुए हैं और उन्होंने अपने इस्तीफ़े की पेशकश की है… याद है कब? नहीं याद होगा… मैं याद दिलाता हूँ… "सीजर की पत्नी" ने कहा था कि "यदि अमेरिका के साथ भारत का परमाणु समझौता पास नहीं होता तो मैं इस्तीफ़ा दे देता…"। अब आप स्वयं ही समझ सकते हैं कि उन्हें किसकी चिंता ज्यादा है?
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(भाग -2 में जारी रहेगा…जिसमें RTI के तहत प्राप्त कुछ फ़ाइलों की नोटिंग एवं तथ्य हैं… तब तक मनन कीजिये…)
(श्री सुरेश चिप्लूकर जी के ब्लॉग से)
Monday, September 12, 2011
भारतीय हिन्दुओ को बंगलादेशी नागरिकता के लिए विवश किया जा रहा है!
(बंगलादेश निर्माण से पहले पूर्वी पाकिस्तान में हिन्दू -नरसंहार का एक चित्र ... इस चित्र में पाकिस्तान आर्मी का एक जिहादी ये पहचान कर रहा है की ये हिन्दू है या मुसलमान) |
बंगलादेश को कुछ विवादों के चलते भूमि दी जा रही है, जिसके बारे में अनजान रखा जा रहा है सबको | कोई समाचार पत्र छाप रहा है की केवल 60 एकड़ भूमि ही दी गई है ? किसी का छापना है की 600 एकड़ .... 140 एकड़ .... क्या है सत्य ... ?
ये बात है तब की जब जेस्सौर (Jessore) के हिन्दू राजा और मुर्शिदाबाद के नवाब जुए में गाँव के गाँव हार जीत पर लगाया करते थे| 1947 के बंटवारे के बाद मुर्शिदाबाद भारत में आ गया और हिन्दू शहर जेस्सौर (Jessore) बंगलादेश में चला गया | कुछ द्वीपों का भी इतिहास ऐसा है की भारत और तत्कालीन पाकिस्तान के साथ सीमा विवाद निरंतर बना रहा |
मार्शल टीटो समझौता
बंगलादेश और पाकिस्तान के साथ कोई प्राकृतिक सीमा नहीं है, जैसे की चीन और श्री लंका के साथ पाई जाती है, अतः सीमा विवाद भी होना आवश्यक था और वो भी ... इस्लामी मानसिकता के साथ | बंगलादेश की सीमा भारतीय राज्यों से लगती है ...पश्चिम बंगाल, असम और मेघालय UNO ने एक कमेटी बना कर भारत पाकिस्तान सीमा विवाद का हल करवाना चाह जिसकी अध्यक्षता कर रहे थे युक्रेन के निवासी मार्शल टीटो | 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेहरु और तत्कालीन पाकिस्तान शासक ने भी स्वीकृति दी और आगे जाकर याह्या खान आदि ने यह निर्णय लिया की मार्शल टीटो जो परामर्श देगा उसे हम मान लेंगे | मार्शल टीटो ने भी बड़ी कुशलता से षड्यंत्र रचते हुए यह परामर्श सुझा दिया की तत्कालीन तीस्ता नदी को ही सीमा मान लिया जाए, जिसको की उस समय तो मान लिया गया | परन्तु उस समय तीस्ता नदी में बाढ़ आई हुई थी जिस कारण से तीस्ता नदी ने कई जगहों से रास्ता बदला भी हुआ था और पानी भी भरा हुआ था |
इस्लामी मानसिकताओं के लालच का तो कोई अंत स्वाभाविक रूप से है ही नहीं, हजरत महामूत के Easy Money के सिद्धांत को तो अपने खून में बसा चुके हैं | तत्कालीन पाकिस्तान (बंगलादेश) की नीयत खराब हुई और उसने तत्कालीन बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों पर भी अपना कब्जा लेने को बार बार भारत पर दबाव बनाया, सीर क्रीक का विवाद भी आप सब पढ़ सकते हैं इस विषय पर |
वर्तमान समझौता
बंगलादेश और पाकिस्तान के साथ कोई प्राकृतिक सीमा नहीं है, जैसे की चीन और श्री लंका के साथ पाई जाती है, अतः सीमा विवाद भी होना आवश्यक था और वो भी ... इस्लामी मानसिकता के साथ | बंगलादेश की सीमा भारतीय राज्यों से लगती है ...पश्चिम बंगाल, असम और मेघालय UNO ने एक कमेटी बना कर भारत पाकिस्तान सीमा विवाद का हल करवाना चाह जिसकी अध्यक्षता कर रहे थे युक्रेन के निवासी मार्शल टीटो | 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद नेहरु और तत्कालीन पाकिस्तान शासक ने भी स्वीकृति दी और आगे जाकर याह्या खान आदि ने यह निर्णय लिया की मार्शल टीटो जो परामर्श देगा उसे हम मान लेंगे | मार्शल टीटो ने भी बड़ी कुशलता से षड्यंत्र रचते हुए यह परामर्श सुझा दिया की तत्कालीन तीस्ता नदी को ही सीमा मान लिया जाए, जिसको की उस समय तो मान लिया गया | परन्तु उस समय तीस्ता नदी में बाढ़ आई हुई थी जिस कारण से तीस्ता नदी ने कई जगहों से रास्ता बदला भी हुआ था और पानी भी भरा हुआ था |
इस्लामी मानसिकताओं के लालच का तो कोई अंत स्वाभाविक रूप से है ही नहीं, हजरत महामूत के Easy Money के सिद्धांत को तो अपने खून में बसा चुके हैं | तत्कालीन पाकिस्तान (बंगलादेश) की नीयत खराब हुई और उसने तत्कालीन बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों पर भी अपना कब्जा लेने को बार बार भारत पर दबाव बनाया, सीर क्रीक का विवाद भी आप सब पढ़ सकते हैं इस विषय पर |
वर्तमान समझौता
वर्तमान समझौते के तहत ऐसे प्रतीत होता है की जैसे भारत ने ...अमेरिका जैसे देश के आगे घुटने टेक दिए हों क्योंकि Uncle Sam तो फिर भी दादागिरी के लिए मशहूर हैं, अपने एजेंटों से परमाणु संधि के लिए भारत के संसद तक खरीद लेते हैं वो तो ....परन्तु बंगलादेश जैसे भूखे नंगे दो कौड़ी की औकात न रखने वाले देश के आगे घुटने टेक देना भारतीय विदेश नीति के इस्लामीकरण की मानसिकता को दर्शाता है | ऐसा प्रतीत होता है जैसे भारत की विदेश नीति इस्लामी मानसिकता के लोगों द्वारा निर्धारित की जाती है | इस भूमि विवाद के विवादित समझौते के अंतर्गत एक बहुत बड़ा जनसँख्या परिवर्तन भी होने जा रहा है जिसके बारे में भारतीय जनमानस को इतिहास की तरह आज भी .... अँधेरे में ही रखा जा रहा है |
बंगलादेश के 1,70,000 मुसलमानों को भारत में शरण दी जाएगी जिनकी कुल भूमि है 5400 एकड़ | और भारत के 30000 हिन्दुओं की 17500 एकड़ भूमि बंगलादेश को दी जा रही है | 12000 एकड़ भूमि दुसरे देश को दी जा रही है... इससे बड़ा धोखा या देशद्रोह नहीं हो सकता भारतीय जनमानस के साथ |
और साथ में भारत के हिन्दुओं के ऊपर एक शर्त भी थोपी गयी है की यदि आप भारत सरकार से अपनी भूमि पर कोई Claim नहीं करते हैं तो आप भारत में कहीं भी रह सकते हैं |
और यह भी प्रत्यक्ष है, साक्षी है, प्रमाणित है की ... जब ये हिन्दू लोग बंगलादेश के अधीन आएंगे तो अगले कुछ वर्षों में ही अधिकतर का धर्म-परिवर्तन भी करवा दिया जायेगा, और जाने कितनी महिलाओं को यौन-उत्पीडन के दौर से गुजरना होगा ?
क्या यह ... हिटलर शाही का देश है ? प्रश्न फिर वही आता है की क्या यह सरकार और नीतियाँ .... भारतीय हैं ? किस लोकतंत्र और धर्म-निरपेक्षता की पक्षधर है ये लोकतंत्र के अंदर व्याप्त राजशाही ...? क्या आप लोग इसका विरोध कर सकते हैं ? यदि आज नहीं कर सकते तो तैयार रहिये आप भी किसी भी समय किसी भी इस्लामी देश के अधीन हो सकते हैं बिना किसी चल अचल सम्पत्ति के |
यहाँ कुछ बातें उल्लेक्ख्नीय है ...
• न ही वेटिकन, चीन और सलीमशाही जूतियाँ चाटने वाली मीडिया द्वारा इस विषय पर कुछ विशेष दिखाया या छापा जा रहा है ?
• विपक्ष द्वारा या किसी भी हिंदूवादी सन्गठन द्वारा कोई बड़ा आन्दोलन नहीं किया जा रहा ? • विपक्ष भी चुप ..... ? जाने कौन सी दवाई पिलाई हुई है आजकल विपक्ष को सरकार ने ?
• भारतीय जनमानस तो पुरे विश्व में इतना महामूर्ख है की उसे न तो कुछ पढने की अब आदत है और न ही कुछ समझने की ... एक पैशाचिक मानसिकता खून में रच बस चुकी है ... "हमको क्या ?? "
महत्वपूर्ण ये है की इंदिरा गांधी ने 1980 में इस विवाद पर बंगलादेश को मिलेगी ... उतनी ही भूमि बंगलादेश यदि भारत को देता है .. उसी दिशा में यह समझौता पूर्ण हो सकता है अन्यथा नहीं | हालांकि बंगलादेश सरकार ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया था | परन्तु भारत की ऐसी कौन सी नब्ज़ है .... जो इस्लामी मानसिकता के मंत्रियों की उँगलियों के नियन्त्रण में है ? क्या भारत में पैदा होने वाले हिन्दुओं पर जयचंदी श्राप अनंत काल के लिए लग चुका है ? सब बिके हुए ही पैदा हो रहे हैं ?
भला किस प्रकार कुछ भारतीय हिन्दुओ को इस्लामी देश की नागरिकता लेने पर विवश किया जा सकता है ? और 12000 एकड़ भारतीय भूमि दुसरे देश को कैसे दी जा सकती है ? कृपया आप सब सुझाएँ .... क्या हो रहा है ? और आप सब क्या क्या कर सकते हैं ?
साभार: प्रवीण आर्य
साभार: प्रवीण आर्य
Wednesday, September 7, 2011
आखिर हम बंगलादेश से हार गए
मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार भारत और बांग्लादेश के बीच सीमा जमीन समझौता हुआ है। इसके तहत 111 एनक्लेव बांग्लादेश को सौंपे जाएंगे और भारत की करीब 600 एकड़ जमीन बांग्लादेश की हो जाएगी। भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बांग्लादेश यात्रा के दौरान इस बारे में समझौता हुआ है। भारत में इस समझौते का विरोध तय है, क्योंकि प्रधानमंत्री के रवाना होने से ठीक पहले असम गण परिषद के नेताओं ने उनसे मांग की थी कि भारत की एक इंच जमीन भी बांग्लादेश को नहीं दी जानी चाहिए।
मनमोहन सिंह मंगलवार को दो दिवसीय दौरे पर बांग्लादेश पहुंचे। पीएम के सलाहकार ने विशेष विमान में बताया कि दोनों देशों के बीच तीस्ता जल बंटवारे को लेकर कोई समझौता नहीं होगा।
ढाका पहुंचने पर प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पर बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना मौजूद थीं। एयरपोर्ट पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम थे। वहां भारतीय प्रधानमंत्री को ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया गया और 21 बंदूकों की सलामी दी गई। इस मौके पर दोनों देशों के राष्ट्रीय गान बजे। मनमोहन सिंह सफेद बीएमडब्ल्यू में सवार होकर ढाका एयरपोर्ट से निकले।
बांग्लादेश के एक मंत्री ने दावा किया था कि पीएम मनमोहन सिंह के बांग्लादेश दौरे के समय तीस्ता जल बंटवारे को लेकर दोनों देशों के बीच एक समझौता किया जाएगा। इससे नाराज पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पीएम के साथ बांग्लादेश जाने से इनकार कर दिया था।
हालांकि पीएम ने इन खबरों का खंडन किया है कि ममता बनर्जी इस बात को लेकर नाराज हैं कि तीस्ता समझौते के तहत बांग्लादेश को 33 हजार क्यूसेक पानी दिया जा रहा है। पीएम के विशेष विमान पर मौजूद एक शीर्ष अधिकारी ने बताया कि बांग्लादेश के दौरे पर जल समझौते को लेकर कोई आखिरी फैसला नहीं किया गया है। हालांकि उन्होंने कहा कि यह समझौता अभी खत्म भी नहीं हुआ है और भारत सरकार इस मसले का हल निकालने पर काम कर रही है।
मनमोहन सिंह के साथ 136 सदस्यों का प्रतिनिधिमंडल बांग्लादेश के दौरे में आया है। यात्रा के दौरान सीमा विवाद को सुलझाने सहित व्यापारिक रिश्ते सुधारने, पारगमन की सुविधा पर चर्चा और नदी जल बंटवारे को अंतिम रूप दिए जाने की सम्भावना है। प्रधानमंत्री के साथ असम, त्रिपुरा, मेघालय और मिजोरम के मुख्यमंत्री भी बांग्लादेश पहुंचे हैं।
Tuesday, September 6, 2011
भ्रष्टाचार के खिलाफ आज़ादी की दूसरी लड़ाई लड़ने वाले खुद कितने ईमानदार हैं?
भ्रष्टाचार के खिलाफ आज़ादी की दूसरी लड़ाई लड़ने का ऐलान करने वाले तथाकथित गांधीवादी अन्ना हजारे की टीम के मुखिया और खुद को सिविल सोसायटी कहने वाले स्वयं कितने ईमानदार हैं? यह सवाल पिछले कई दिनों से उठता रहा है. सरकारी एजेंसियों ने टीम अन्ना को कुछ नोटिस जारी किये तो अन्ना जी धमकी देने लगे कि उन्हें दूसरे रास्ते अपनाने पड़ेंगे. लेकिन अन्ना अनशन तमाशा को संचालित करने वाली “India Against Corruption ” स्वयम आर टी आई के सीधे सीधे जवाब नहीं देती. सूचना के अधिकार पर काम करने वाले जाने – माने सामाजिक कार्यकर्ता अफरोज आलम साहिल ने जब India Against Corruption से जब आर टी आईके तहत सवाल पूछे तो जो जवाब दिए गए उन्हें देखकर तो सरकारी बाबू भी दांतों तले उंगली चबा लें.
अफरोज आलम साहिल
जन लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाईटी के सदस्य वैसे तो बार-बार पारदर्शिता की दुहाई देते हैं और इनमें से कुछ सूचना अधिकार अभियान से भी जुड़े हैं, पर जन लोकपाल बिल के मुद्दे पर ये खुद कोई जानकारी या किसी तरह की पारदर्शिता के लिए तैयार नहीं हैं।
India Against Corruption movement और Public Cause Research Foundation जैसी संस्थाएं जो जन लोकपाल बिल के लिए आंदोलनरत हैं, इस आंदोलन और जन लोकपाल बिल से संबंधित सूचनाएं देने से इंकार कर रहे हैं। ये वही लोग हैं जो बार-बार सरकार से कह रहे हैं कि लोक बिल के मुद्दे पर सरकारी चीज़ों को जनता के सामने सार्वजनिक करे और जन लोकपाल बिल ड्राफ्टिंग कमिटी के मीटिंगों का प्रसारण कराए। पर ऐसी संस्थाएं सरकार से जो मांग कर रही है, वो उनसे खुद पीछे हट रहे हैं।
खैर, हमने दिनांक 13.04.2011 को India Against Corruption movement और पब्लिक कॉज़ रिसर्च फाउंडेशन को सूचना के अधिकार के तहत आवेदन भेजा था। (यह वही संस्था है जिसने “इंडिया अगेंस्ट करप्शन” का कार्यक्रम यानी अन्ना हज़ारे का जंतर-मंतर पर भूख हड़ताल आयोजित किया था।)
आवेदन के जवाब में बताया गया कि मांगी गई सूचना का अधिकांश हिस्सा हमारी वेबसाईट www.indiaagainstcorruption.org पर उपलब्ध है। साथ ही वेबसाईट के कुछ पन्नों के फोटोकॉपी भी भेजा। अब हम अपने सवाल और उनके जवाब खुद उनकी वेबसाईट से लेकर आपके समक्ष रख रहे हैं। यह उस संस्था का जवाब है जो पारदर्शिता की वकालत करता है। देश में भ्रष्टाचार को खत्म करना चाहता है। अब आप स्वयं ही तय करें कि इनकी सच्चाई क्या है। यह कितने पारदर्शी है।
- India Against Corruption movement की स्थापना कब और क्यों किया गया। इसकी स्थापना किस उद्देश्य से की गई है। इसके स्थापना में कितने लोग शामिल रहें, और इनका चयन किस तरह से किया गया।
वेबसाइट से लिया गया उत्तर : India Against Corruption movement is an expression of collective anger of people of India against corruption. We have all come together to force/request/persuade/pressurize the Government to enact the Jan Lokpal Bill. We feel that if this Bill were enacted it would create an effective deterrence against corruption. The following eminent personalities started this movement:
Anna Hazare, Baba Ramdev, Sri Sri Ravishankar, Mahamood Madani, Archbishop Vincent M Concessao, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Syed Rizvi, Mufti Shamoon Qasmi, Mallika Sarabhai, Justice D S Tewatia Kamal Kant Jaswal, Sunita Godhra, B R Lalla, Davinder Sharma, Subhash Chandra Aggarwal, Vishwas Utagi, Sayed Shah Fazlur Rahman Waizi, Pradeep Gupta and Arvind Kejriwal.
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि India Against Corruption movement की स्थापना कब किया गया है। इसके स्थापना में कितने लोग शामिल रहें, और इनका चयन किस तरह से किया गया
- स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement के द्वारा कितने कार्यक्रम कब-कब आयोजित किए गए। दिनांकवार सूची उपलब्ध कराएं। इन पर आने वाले खर्चों का ब्यौरा भी उपलब्ध कराए।
वेबसाइट से लिया गया उत्तर : Anna Hazare’s Revised Travel Plans
Anna-ji’s revised travel plans are as follows:
- May 13: Goa
- May 20: Guwahati
- May 26: Ahmedabad
- May 28: Bangalore
“The Bhubaneshwar meeting scheduled to be held on May 24th has been cancelled due to an important meeting of the core committee members. The Hyderabad meeting to be held on May 27th also stands postponed as of now on request from our friends in the city due to exam season in colleges. Programs for both of these cities would be announced at the earliest. ”
Jan Lokpal Janchethana Yathra
Iit will start at 8 am 0n 24th May from Jantar Mantar so please reach before 7.30 am , we will move towards Mathura via NH 2 and will meet people on the way to discuss Draft Jan Lokpal Bill so that more and more people get aware . it will be based on co-operation and sharing basis we will arrange our vehicles by ourself . Volunteers can join it on day to day basis or till they have time . we will try to cover 100 to 120 KM a day but if the villages and towns are more on the way it can be less than 100 km a day. our objective is to meet maximum number of people.
Contact: 9968649410, gautamshriom@gmail.com
Tentative dates for Cities on the way
- Faridabad: 24th
- Mathura: 24th Night and 26th Morning
- Agra: 25th evening and
- Dholpur: 26th
- Morena: 26th
- Gwalior: 27th
- Jhansi: 27th Night
- Lalitpur: 28th
- Bhopal: 30th
Public Consultation/Awareness Program on Jan Lokpal Bill Delhi, May 22, 2011
S.No | VENUE | ADDRESS | TIMINGS | CONTACT PERSON | MOBILE NO |
1 | NARELA | ARYA SAMAJ MANDIR,, ARYA SAMAJ ROAD, NEAR RAMDEV CHOWK , NARELA. | 11.00 AM | JOGINDRA DAHIYA | 9891973125 |
2 | ROHINI | AGRASEN BHAWAN, NEAR PETROL PUMP, SECTOR-8, ROHINI DELHI, Delhi-110085 | 4PM | CHINMOY MOHANTY | 9971232920 |
3 | INDIRAPURAM | SWARN JAYANTI PARK.INDIRAPURAM,GAZHIABAD, UTTARPARDESH | 5PM | ANKIT LAL | 9958109849 |
4 | SAHADRA | CHOUDHARY BUILDERS, B-560, GALI NO-9, MAIN ROAD VIJAY PARK,MAUJPUR,DELHI | 11.30AM | ANITA JI | 9891095884 |
Public Consultation/Awareness Program on Jan Lokpal Bill Delhi, May 25, 2011
S.No | VENUE | ADDRESS | TIMINGS | CONTACT PERSON | MOBILE NO |
1 | Shalimar Bagh | East Shalimar Bagh, BC Block, A/95, Near Kela Godam, Delhi | 07.00 PM | Rishikesh Kumar | 9911483629 |
Events Chart
- October 29th, 2010: A Press Conference was held at Press Club of India which was addressed by Kiran Bedi, Swami Ramdev (through phone), Arvind Kejriwal and Madhu Trehan. The Conference was held to highlight the fact that Shunglu Committee had inadequate powers to investigate the CWG scam. Click here
- November 14th, 2010: For registering a complaint regarding corruption in the Commonwealth Games, nearly 10,000 people assembled at the Parliament Street Police Station. Those eminent personalities who were present include Swami Ramdev, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal, Swami Agnivesh, Justice Tewatia, Sunita Godhra, Arch Bishop Vincent M Concessao, Devendra Sharma, Anna Hazare, Maulana Mufti Shamoom Kashmi, Maulana Kalve Rizhvi and Subhash Chandra Aggarwal. Click here
- December 1st, 2010: A Press Conference was held in New Delhi, in which a comprehensive Anti-corruption Bill, Jan Lokpal Bill, was released. A letter was subsequently written to the PM, CJI and all CMs for a strong anti-corruption system, Lokpal/Lokayukta. Click here.
- December 9th, 2010: A day long seminar was held at IIC on “How effective are our anti-corruption agencies in tackling high level corruption?”
- January 30th, 2011: Thousands of people marched against corruption in more than 52 cities in India and abroad. Copies of CVC Act, CBI Act and Government’s draft Lokpal Bill were torn by thousands of people all across the country giving a strong message that the people just do not have faith in all these weak and ineffective anti-corruption agencies. A campaign for creating of ‘Vote Bank Against corruption’ was also launched. Several letters were written for seeking appointments with PM and other prominent political party leaders. Click here
- On January 31, memorandums were sent to all major political parties, demanding for a string anti-corruption agency.
- On Feb 2, letters were written to PM, Sonia Gandhi and other key leaders and ministers for seeking an appointment. The letter was signed by Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Arvind Kejriwal and Kamal Jaswal.
- On Feb 14th, Sonia Gandhi writes back to Swami Agnivesh — an acknowledgement.
- On Feb 17, Anna sends a memorandum to the PM (in Marathi). In the letter he writes about his intention to go on a fast.
- On February 26, Anna writes to the PM for setting up a joint drafting committee. He writes about going on an indefinite fast in the letter.
- In the subsequent month (February) several meetings took place with party bigwigs.
- On March 7th, Anna met with PM who asked him to wait till May 13th. Anna refuses. He writes a letter on March 8th reiterating his demand for a Joint committee.
- March 11: All Party meeting at India Islamic Center meeting
(A GOM on corruption is formed meanwhile) - On March 21st Anna writes to PM informing him of his reservations of forming a sub-committee consisting only ministers to draft the Lokpal Bill. He again asks for a joint committee, else his fast continues.
- On 23rd March, V Narayanaswamy writes back seeking to meet Anna ji on 28th March, 2011. Anna did not go for the meeting, and writes a letter to Narayanaswamy on March 24th
- Swami Agnivesh, Justice Tewatia, Sunita Godara and Devinder Sharma go and meet Anna. They ask the civil society to request Anna to not go on a fast. They submit a letter to Antony specifying their demands once again.
- March 30th, Anna writes to all big leaders and parties to join his fast.
- April 1: Kapil Dev writes to PM
- April 4th: Press conference to declare the fast.
- April 5: Anna sits on an indefinite fast; nearly 500 people sit with him on indefinite fast in Delhi (click here for the list of aamaran anshankaris).
- On April 6th Anna writes to PM in which he counters the claim that he is being “instigated by people” to sit on fast. He also gives instances of joint committees that were formed in the past for drafting laws.
- April 6th: Aamir Khan writes to Anna and PM
- On April 8th: Anna writes to PM and Sonia Gandhi about Swami Agnivesh’s and Arvind’s meeting with Kapil Sibal in which the government agrees for a joint committee.
- April 9th: Gazzette released Click here
टिप्पणी: वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि इन कार्यक्रमों पर कितना खर्च किया गया है। जबकि इनमें से कई जगहों पर जाने के लिए हवाई यात्राओं तक का सहारा लिया गया है।
- इस India Against Corruption movement में कौन-कौन से लोग जुड़े हैं। सदस्यों सहित समस्त अधिकारीगण का नाम उपलब्ध कराए।
वेबसाइट से लिया गया उत्तर :
Anna Hazare, Baba Ramdev, Sri Sri Ravishankar, Mahamood Madani, Archbishop Vincent M Concessao, Swami Agnivesh, Kiran Bedi, Syed Rizvi, Mufti Shamoon Qasmi, Mallika Sarabhai, Justice D S Tewatia Kamal Kant Jaswal, Sunita Godhra, B R Lalla, Davinder Sharma, Subhash Chandra Aggarwal, Vishwas Utagi, Sayed Shah Fazlur Rahman Waizi, Pradeep Gupta and Arvind Kejriwal.
स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement को कहां-कहां से कितनी राशि फंड के रूप में मिली है और इन फंड को कहां-कहां खर्च किया गया है। समस्त जानकारी उपलब्ध कराएं। साथ ही Balance Sheet की प्रतिलिपी भी उपलब्ध कराएं।
वेबसाइट से लिया गया उत्तर :
India Against Corruption | ||
Receipt and Expenditure statement | ||
As on April 13, 2011 | ||
This statement is for 30th January rally, indefinite fast in April and all activities related to preparations thereof |
EXPENDITURE | ||
Particulars | Amount | |
Printing | 732624 | |
Traveling And Conveyance | 461382 | |
Stationary | 6940 | |
Food | 81751 | |
Telecom | 893938 | |
Tent, Bed, Sound System & Hall Booking | 947344 | |
Postage | 2405 | |
Video recording | 11755 | |
Medical for those on fast | 44908 | |
Miscellaneous | 86853 | |
Total | 3269900 |
LIST OF DONORS | ||
Name | Amount | |
A. Guruswami | 5000 | |
Ace Productions Pvt. Ltd. | 10000 | |
Ajay Goyal | 5000 | |
Akshar Cultural Trust | 100000 | |
Alka Thakran | 5000 | |
Amarnath Palacherla | 25000 | |
Anand Mahajan | 60000 | |
Anil Bhardwaj | 50000 | |
Anuj Kumar | 10000 | |
Arun Duggal | 300000 | |
Arvind Bhai Chimanlal Shah | 5000 | |
Arvind Sethi | 10000 | |
Ashok Sud | 10000 | |
Atul Vijay Vikash Saini | 7000 | |
Bala Deshpandey | 10000 | |
Carmel Convent School | 20000 | |
catalyst developments | 10000 | |
Chandrakant DhirajLal Mehtalia | 25000 | |
Common Cause | 25000 | |
Darshan Singh Pan India | 5000 | |
Eicher Goodearth Trust Mr. Vikram Lal | 300000 | |
Gupt Daan | 5000 | |
Harbachan Singh Bawa | 50000 | |
Harish Rangwala | 10000 | |
Harsh Kumar Chaturvedi | 5000 | |
HDFC Bank Ltd. | 50000 | |
Hemlata Investment Pvt. Ltd. | 25000 | |
Hitesh Oberoi | 25000 | |
Ilengovan Arunachalam | 5000 | |
jai Hind vendematram | 5000 | |
Jindal Aluminium Ltd/Mr.Sitaram Jindal | 2500000 | |
Jyotindra Mani Bhai Trivedi | 100000 | |
K v Raju | 5000 | |
Kamal K Shah | 25000 | |
Ketaki Sood | 10000 | |
Krishan Kumar Bansal | 11000 | |
Luthra and Luthra Law Office | 50000 | |
Luv Vikram Kothari | 5000 | |
M/s Enam Securities Pvt. Ltd. | 200000 | |
M/s J M Financial Foundation | 50000 | |
M/s matrix clothing pvt ltd. | 25000 | |
Manon Nalin Shah | 5000 | |
Mansukhlal Vasa | 10000 | |
Mayur Jay Kumar Vora | 5000 | |
Mehta Foundation | 10000 | |
Murti Lal Aggrawal | 5100 | |
Neeraj Aggarawal | 25000 | |
Nilofer R. Rustom Ji | 10000 | |
Nimmagadda Foundation | 100000 | |
Nirmala | 5000 | |
O P Vaish | 25000 | |
OM R Barlinge | 15000 | |
People Synergy | 5000 | |
Premila Nazareth Satyanand | 5000 | |
Prince | 5000 | |
r d Goyal | 20000 | |
R K Gupta Foundation, | 10000 | |
R Narayan | 6500 | |
Raj Dutta | 20000 | |
Rajesh Bhaskar Mandlik | 5000 | |
Rajiv Ram Lal Gupta | 25000 | |
Rajkumar Aggrawal | 10000 | |
Rakshit Jain Era | 20000 | |
Ramky (Phani Kumar) | 500000 | |
Ravindra Bahl | 50000 | |
Reshad Minoo Rustom Ji | 10000 | |
Robin Shalabh Chandra | 50000 | |
Romesh Sobti | 25000 | |
Safexpress Pvt. Ltd. | 100000 | |
Sai Shipping Co. (P) Ltd. | 5000 | |
Sanjay Malhotra | 10000 | |
Sanjeev Anand IndusInd bank | 15000 | |
Sanjeev Bikhchandani | 50000 | |
Sanjeevan Jyoti Charitable Trust | 25000 | |
Santosh Awatramani | 25000 | |
Sawan Vinodbhai | 51000 | |
Shachindra Nath | 20000 | |
Shri Orient Corporation | 35000 | |
Shriram Investments | 200000 | |
Suraj Agencies | 21000 | |
Surender Pal Singh | 1000000 | |
Suresh | 50000 | |
Suresh Kumar Kannan | 9000 | |
Surjeet Singh | 50000 | |
Tejveer Singh | 5000 | |
Tepflo Pumps (India) Pvt. Ltd. | 5000 | |
The Jammu & Kashmir Bank Ltd | 10000 | |
The Supreme Industries Ltd. | 15000 | |
Triburg sports | 9570 | |
V. Rangrajan | 100000 | |
V.Malik Associates | 21000 | |
Vaibhav Dayal | 20000 | |
Vera mahajan | 40000 | |
Vijay Thakkar | 200000 | |
Vikas Banga | 5000 | |
Vikas Mapara | 200000 | |
Vimal Shah | 5000 | |
Vipin kapur | 20000 | |
Virender Kumar Jain | 11000 | |
Vishal Vijay Gupta | 51000 | |
Vivek Krishna Marla | 10000 | |
Mr. Thadani | 20000 | |
Apart from the above mentioned donors, 2,871 people donated less than Rs 5000 each, the total of which is Rs 7,34,498. | ||
Donation Received during Rallies held in Other Cities | ||
Date | City | Donation |
29.04.11 | Banaras rally | 5100 |
30.04.11 | Sultanpur rally | 5650 |
01.05.11 | Lucknow rally | 31471 |
06.05.11 | Meerut meeting | 4699 |
07.05.11 | Ghaziabad meeting | 3121 |
20.05.11 | Guwahati rally | 33,363 |
Total | 83404 |
DONATIONS RECEIVED | 8287668 | |
BALANCE | 5017768 |
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद यह जानकारी आधी-अधूरी है।
- स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement से जुड़े लोगों ने कितनी और कहां-कहां यात्राएं की। इस पर आने वाले खर्चों का ब्यौरा उपलब्ध कराए।
वेबसाइट से लिया गया उत्तर :
Traveling And Conveyance | 461382 |
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है कि इन्होंने कितनी और कहां-कहां यात्राएं की हैं, और इस पर कितना खर्च किया गया है। जबकि इनमें से कई जगहों पर जाने के लिए हवाई यात्राओं तक का सहारा लिया गया है।
- स्थापना से लेकर अब तक इस India Against Corruption movement की बैठकें आयोजित की गई और इनमें कौन-कौन से लोग शामिल रहें। सारे मीटिंग्स के मिनट्स की कॉपी और फाईल नोटिंग दी जाए।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है। किसी भी मीटिंग्स के मिनट्स की कॉपी और फाईल नोटिंग वेबसाईट पर नहीं है।
- Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट किसने किया है और इसके लिए कितनी बैठकें आयोजित की गई। इससे संबंधित समस्त कागज़ात और फाईल नोटिंग उपलब्ध कराई जाए।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है। कोई भी फाईल नोटिंग वेबसाईट पर नहीं है।
- Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट करने के लिए जिस टीम का गठन किया गया, उसमें कौन-कौन से लोग शामिल थे। उनका ब्यौरा उपलब्ध कराए। साथ ही यह भी बताए कि उनको किस आधार पर टीम में शामिल किया गया और उनका बैकग्राउंड क्या है।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- Jan Lokpal Bill को ड्राफ्ट करने के लिए कितनी धन राशि खर्च की गई।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- जंतर-मंतर पर पांच दिन के धरने पर कितनी खर्च की गई है और इसके लिए कहां-कहां से कितना-कितना फंड या donation मिला है। समस्त जानकारी उपलब्ध कराएं, साथ ही Balance Sheet की प्रतिलिपी भी उपलब्ध कराएं।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी अलग से इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- जंतर-मंतर पर इन पांच दिनों में कौन-कौन से संस्था, राजनीतिक दल और बॉलीवुड से लोग आएं। सभी प्रमुख लोगों के नामों की सूची उपलब्ध कराएं।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- Event Management और Media Management का काम किसको सौंपा गया था और इस काम पर कितनी धन-राशि खर्च की गई।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- इस धरने की तैयारी के लिए कितनी यात्राएं की गई और इन पर कितना खर्च आया।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- अप्रैल, 2010 से लेकर इस आवेदन के जमा किए जाने तक Public Cause Research FoundationIndia Against Corruption movement से जुड़े पदाधिकारियों और टीम के सदस्यों द्वारा कितनी हवाई यात्राएं की गई। यह किसलिए और कहां-कहां की गई। इनमें से कितनी यात्रा का खर्च संस्था द्वारा स्वयं वहन किया गया और कितनी यात्राओं का खर्च दूसरे संस्थानों ने दिया, पूरा ब्यौरा उपलब्ध कराएं। और
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- इस आमरण अनशन के विज्ञापन पर कितनी धन-राशि खर्च की गई। साथ ही यह भी बताएं कि इसके लिए पोस्टर, बैनर, होर्डिंग, झंडे, पम्फलेट, स्टेज और अन्य सामाग्रियों पर कितना पैसा खर्च किया गया। सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएं।
टिप्पणी : वेबसाईट पर मौजूद इस जानकारी में कहीं भी इस बात की जानकारी नहीं दी गई है।
- Public Cause Research Foundation ने लगातार सूचना के अधिकार और सरकारी कामकाज में पारदर्शिता को लेकर काम किया है, लेकिन Public Cause Research Foundation अपने स्तर पर पारदर्शिता सुनिश्चित करने में विश्वास रखता है। अगर हां! तो इस दिशा में अब तक क्या क़दम उठाए गए हैं। सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराएं।
टिप्पणी : इस सवाल का कोई जवाब देना इन्होंने मुनासिब नहीं समझा।
- क्या Public Cause Research Foundation का मानना है कि वो अपने आय व व्यय का ब्यौरा देने और अपने कामकाज की पारदर्शिता सुनिश्चित करना ज़रूरी नहीं समझता? अगर समझता है तो अब तक किए प्रयासों का विवरण उपलब्ध कराएं।
टिप्पणी : इस सवाल का कोई जवाब देना इन्होंने मुनासिब नहीं समझा।
अफरोज आलम साहिल जाने - माने सामाजिक कार्यकर्ता और आर टी आई कार्यकर्ता हैं.
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