Monday, January 30, 2012

बोलीवुड की फिल्मे और हमारा धरम.


आज दुनिया के किसी भी देश को ले लो, उस देश में बनने वाली या प्रदर्शित होने वाली फिल्मे देश की संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ देती हैं. फिल्मे जो केवल मनोरंजन का एक साधन समझी जाती हैं, किसी भी देश को बना या बिगाड़ सकती हैं. कुछ रुपयों की टिकट लेकर आप जब फिल्म देखने जाते हैं और दो से तीन घंटे उस अँधेरे हाल में बिताने के बाद जब बहार निकलते हैं तो आप अनजाने ही काफी सके तक उन पत्रों से जुड़े रहते हैं. और इसका सीधा मनोवैज्ञानिक कारण है कि आप फिल्म को एकटक अँधेरे हाल में देख रहे होते हैं और वह सीधे आपके मस्तिष्क पर असर डालती है.


आइये अब देखते हैं क कैसे इन अभिनेताओं, कहानियों तथा गीतों ने हमारी सनातन संस्कृति का सत्यानास किया.

एक समय था जब एक मुस्लिम अभिनेता को सफल होने के लिए हिन्दू नाम का सहारा लेना पड़ता था. युसूफ खान (दिलीप कुमार) से अच्छा उदाहरण और कोई नहीं मिल सकता. संजय ने बहुत लम्बे समय तक खुद के नाम के आगे खान लिखने से परहेज़ किया.लेकिन आज? आज शाहरुख़ खान बड़े गर्व से कहता है कि वह पठान है और उस पर तुर्रा यह कि एक हिन्दू लड़की से विवाह करके बड़ी शान से जी रहा है. एक वही क्यों? जिस भी मुस्लिम कलाकार या क्रिकेटर को देखो, हिन्दू लड़कियों से प्रेम सम्बन्ध बनाना या विवाह करना अपना धर्म समझता है. क्या यह सब अचानक हो रहा है? क्या यह एक सोची समझी साज़िश नहीं है? शर्मीला टैगोर /पटौदी से आरंभ हुई यह कहानी आज घर घर में दोहराई जा रही है. luv jihaad कि सफलता का बड़ा कारण यही है. यह अभिनेता आज लोगों के ideals हैं और इन्ही की देखा देखि हिन्दू लड़कियां भी मुस्लिम लड़कों के चंगुल में फंसती जा रही हैं.

एक समय जब एक धर्म के लड़के की शादी किसी दूसरे धर्म के लड़के से दिखाई जाती थी तो दंगे फसाद हो जाते थे, जब कि आजकल तो फ़िल्मी कहानियों में हिन्दू लड़कियों कि शादी मुसलमानों से बड़ी शान से दिखाई जा रही है और कहा जा रहा है कि वह आंतंकवादी नहीं है. जब से मैंने फिल्मे देखना आरम्भ किया है, मैंने देखा है कि हर फिल्म में एक मुसलमान सच्चा मुसलमान होने का दावा करता है और किसी हिन्दू की जान बचाता है. हिन्दू साधुओं को केवल ढोंगी ही दिखाया गया. कोई फिल्म याद नहीं जिसमे हिन्दू ने मुसलमान बच्चे को अपना बच्चा बना कर पाला हो. क्या कारण था कि केवल ऐसी ही कहानियां लिखी जाती थी? हर अच्छा पुलिस वाला, सैनिक, आम आदमी या फिर कसाई भी सच्चा मुसलमान होता था और चोर , गुंडे आदि केवल हिन्दू?

हर हिंदी फिल्म के गीत में "खुदा खैर करे,/ अल्लाह जाने क्या होगा आगे" आदि शब्दों कि भरमार होती थी और है. क्या हिंदी के व्यकरण के सभी, रस तथा अलंकार देवी देवताओं के नाम आदि कम पड़ जाते हैं ? क्या हिंदी भाषा इतनी अशक्त है कि उसमे कुछ शब्द ही नहीं मिलते थे गीत लिखने के लिए ?

क्या आपको इस सबके पीछे कोई षड़यंत्र नज़र नहीं आता? एक सोचा समझा षड्यंत ! क्या इस तरह धीरे-२ इस्लाम को तथा उर्दू को भारत में फैलाया जाना किसीको नहीं दिख रहा? जिस नेता को u p के भैये दीखते हैं, यह मुल्ले नहीं दीखते? या फिर उनसे लड़ने की ताकत नहीं है ?

आज तो फ़िल्मी दुनिया में इन खान`स की पूरी दादागिरी है. जो नायिका उनका कहा नहीं मानती, वह चल ही नहीं सकती. जो हिन्दू कलाकार इनके बारे में एक शब्द भी कह दे, फ़िल्मी दुनिया से बहार का रास्ता दिखा दिया जाता है. विवेक ओबेरॉय इसका एक उदाहरण है. पिछले दिनों हृतिक रोशन से नाराज़गी की वजह से उसे बिग बोस में सलमान खान ने अपनी फिल्म अग्निपथ का प्रोमोतिओं नहीं करने दिया. यहाँ तक कि संजय दत्त की भी एक न चली. जब तक ताकत नहीं है भाई बन कर रहो और जैसे ही ताकत हाथ में आई, तानाशाही शुरू. कोई बड़ी बात नहीं कि हिन्दू कलाकारों को फ़िल्मी दुनिया में टिके रहने के लिए जजिया भी देना पड़ता हो ! क्यों न हो ? आखिर Financer तो दुबई तथा पाकिस्तान में बैठे हैं.

आपमें से कितनो को यह पता है क केवल हिन्दू धर्म का मज़ाक र्दाने के ईए धारावाहिक रामायण की नायिका सीता माता (दीपिका) को एक बहुत ही गंदे रोल में दिखाया गया था और यह कहा गया था क देखो ! यह है तुम्हारी सीता.



२०११ के अंत में एक फिल्म का बड़े जोर शोर से ऐलान हो रहा था जिसमे एक मुस्लिम बेटी अपने बाप से पूछती है क "यदि पाल नहीं सकते थे तो पैदा ही क्यों किया ७ लड़कियों को ?" कहाँ गई फिल्म?

फिल्म अज़ान कहाँ गम हो गई सभी websites से, सोचो क्यों? यदि एक फिल्म से कुछ असर न पड़ता हो तो क्यों बंद करवाते हाँ यह फिल्मे? कितना पैसा और ताकत खर्च करते हैं यह एक फिल्म को डिब्बे में बंद करवाने में ? क्यों ?आप logon ko पता ही नहीं चला कि कब दूसरी भाषा उर्दू भारत कि मुख्या भाषा हिंदी में विलीन होकर हिंदी को खाती चली गई और आज किसी बच्चे तो क्या, बड़े से भी पूछो तो उसे विशुद्ध हिंदी बोलनी नहीं आती. (मैं स्वंयं भी उन्ही में से एक हूँ) . यहाँ तक कि शुद्ध हिंदी में वार्ता करने वाले का उपहास ही किया जाता है. समाचार पत्र जो पहले विशुद्ध हिंदी में लिखते थे , अब अपने भाषा भूल कर उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का समावेश करने लगे हैं. नवभारत टाइम्स में आज ही उर्दू कि इतनी तारीफ़ कि गई थी कि आग लग गई. क्या आपको खतरे कि घंटी सुनाई नहीं देती?

आज आपकी भाषा, संस्कृति धीरे-२ लुप्त होती जा रही है और आप हैं कि, कुछ भी नहीं कर रहे. आप पूछेंगे, "क्या कर सकता हूँ मैं? मैं अकेला कर ही क्या सकता हूँ?"

तो मेरे मित्रों, मेरे बच्चों, मेरे बुजुर्गों ! आज के बाद किसी खान कि फिल्म सिनेमा हाल पर दिखना बंद. जिस CD के किसी एक भी गाने में हिन्दू को अल्लाह या खुदा के नाम पर गाते हुए कोई भी गाना हो, उस CD को खरीदना बंद. जिस फिल्म में किसी हिन्दू लड़की को मुस्लिम लड़के से विवाह करते या प्रेम करते दिखाया गया हो, उस फिल्म का सार्वजनिक बहिष्कार. हर वह वस्तु जिसका विज्ञापन कोई मुस्लिम कलाकार कर रहा हो, का बहिष्कार.


यह मत सोचो क एक आपके न खरीदने से या फिल्म न देखने से क्या होगा ! जब उन्हें ७० साल लगे हैं हमें खुद में विलीन करने में तो हमें भी कुछ समय तो लगेगा ही. उपहास भी किया जायगा आपका. पर जब पक्के हो तो पक्के रहो. केवल बातों से, नारे लगाने से, सरकार मुर्दाबाद कहने से कुछ नहीं होगा !

यदि अपने धर्म को, अपने देश को बचाना है, अपनी संस्कृति को बचाना है तो कट्टर बनो. कट्टर बन ने का अर्थ यह नहीं है कि दुसरे धर्मो से नफरत करो, बल्कि यह है कि अपने धर्म से प्यार करो. इतना ही काफी है. नहीं तो आज तो एक मंदिर में घंटा बजाना बंद हुआ है, कल सभी मंदिर ऐसे ही सूने रहेंगे और गूंजेगी तो सिर्फ अज़ान.

अपने इस छोटे से त्याग पर एक दिन आपको गर्व होगा.

उठो जागो हिन्दुओं ! अब नहीं जागे तो फिर कभी मौका नहीं मिलेगा.

Friday, January 27, 2012

अब मंदिर में घंटी बजाने पर रोक की माँग


(चित्र में भक्तों को रोकती हुई महिला पुलिस कांस्टेबल)

हैदराबाद में मजलिस पार्टी के विधायक दल के नेता अकबरुद्दीन ओवैसी ने शहर में राम नवमी के अवसर पर निकलने वाली शोभा यात्रा को अनुमति ना देने की प्रशासन से माँग की है| ओवैसी का कहना है की इस बार ईद मिलाद-उन-नवी का उत्सव होली के त्यौहार के आसपास ही है और उसी के कुछ दिन के बाद ही राम नवमी का उत्सव है जिससे शहर में दंगो की स्थिति पैदा हो सकती है|

ओवैसी की इस मांग से शहर के हिंदुओं में अत्यधिक रोष है और वही हिंदूवादी संघठनो ने इसकी कड़ी निंदा की| इस मुद्दे पर शहर के युवा नेता राजा सिंह ने कहा कि एक ओर ओवैसी प्रशासन से ईद मिलाद-उन-नवी के भव्य आयोज़न में सहयोग की अपील कर रहे है वही दूसरी ओर रामनवमी ओर हनुमान जयंती पर पाबंदी की माँग कर रहे है| राजा भाई ने कहा की पुराने शहर में मुस्लिम लीग का गुंडा राज चल रहा है जिसमें कांग्रेस बराबर की भागीदारी रही है| उन्होंने कहा की कोई भी राम नवमी ओर हनुमान जयंती मनाने से उन्हें नहीं रोक सकता|

राजा सिंह जी ने शहर की स्थिति बताते हुए कहा की सरकार हिंदू विरोधी कार्य करने में लिप्त है जिसका ताजा उदाहरण चार मीनार के पास स्थित भाग्यलक्ष्मी जी के मंदिर पर 'आरती के समय घंटे' बजाने पर रोक है; जिसके लिए प्रशासन ने दो कांस्टेबल भी भक्तों को घंटे-घन्टी बजाने से रोकने के लिए लगाये है|

इस विषय पर हिंदू महासभा के प्रदेश अध्यक्ष श्री जयपाल नयाल ने कहा कि ये माँग ना सिर्फ निंदा योग्य है बल्कि राष्ट्रभावना के विरुद्ध है, राम नवमी का उत्सव ना सिर्फ हिंदुओं का उत्सव है बल्कि यह पूरे भारत वर्ष का उत्सव है जो की भारतीय पुण्य भूमि के गौरान्वित इतिहास को दर्शाता है|

वही इस मुद्दे पर भाजपा के नगर कार्यकारिणी सदस्य नरेश अवस्थी ने इसे राजनितिक लाभ उठाने का प्रयास बताया| उन्होंने कहा कि ये माँग हिंदुओं एवं मुस्लिमो के बीच ईर्ष्या की भावना पैदा करने के लिए की गयी है ओर उन्होंने गृह मंत्री से इस माँग पर तत्काल कार्यवाही की अपील की है और कहा की राम नवमी का उत्सव इस बार ही पहले की तरह ही धूमधाम से मनाया जायेगा|

http://hindi.ibtl.in/news/states/1863/article.ibtl

Friday, January 20, 2012

मत भूलिए 712 से 2012 तक


आशा है अब तक लोगों पर से नए साल 2012 के आने का खुमार उतर चूका होगा तो क्यूँ न सन 2012 के इतिहास के बारे में कुछ चर्चा हो जाए क्या आप जानते हैं इस सन के कडवे इतिहास के बारे में ,डालिए दिमाग पर कुछ जोर , डालिए, डालिए नहीं याद आया ,कोई बात नहीं मै बता देता हूँ इस सन का कड़वा इतिहास :

ये सन उस मनहूस वर्ष की 1300वी वर्षगांठ है जब मुसलमानों ने पहली बार हमारे पावन भारतवर्ष की पावन भूमि को पदाक्रांत किया था | पहली बार किसी मलेच्छ देश के दुर्दांत,जंगली और असभ्य लोगों ने इस देव भूमि पर अपनी कुदृष्टि डालने का न केवल दुसाहस ही किया अपितु इसे पदाक्रांत भी किया, जिनका उद्देश्य भारत की महान संस्कृति, धर्म, दर्शन और संस्कारों को नष्ट करना था |

और यही से भारतवर्ष के उज्ज्वल सूर्य को ऐसा ग्रहण लगा जो अभी तक नहीं हटा| मै बात कर रहा हूँ सन 712 इसवी की जब पहली बार किसी मलेच्छ ने भारतवर्ष पर आक्रमण करने का दुसाहस किया| ये वो समय था जब इस्लाम ने दुनिया की कई फलती - फूलती और विकसित सभ्यताओं को बर्बाद कर दिया था और कईयों पर उसकी कुदृष्टि थी| इस समय अरब जो की इस्लाम का जन्म स्थान है अपने कई निकटवर्ती विकसित देशों जैसे इराक, फारस,मिस्र, जोर्डन,यमन, स्पेन व् सीरया अदि को अपनी धर्मान्धता की भेंट चढ़ा चुका था |और अब उसकी कुदृष्टि फारस के उतर-पूर्व में पड़ने वाले उस समय के सबसे विकसित, सबसे धनी,सबसे शक्तिशाली व् सबसे शांतिप्रिय देश हमारे भारतवर्ष पर थी|

इस्लाम के धर्मान्ध अनुयायी इस देव भूमि, इस पुण्य भूमि को भी नष्ट - भ्रष्ट करने का मन बना चुके थे, परन्तु वे भारत के योधाओं के पराक्रम ,शोर्य ,वीरता और शक्ति का सामना करने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे | ऐसी स्थिति में हज्जाज (वर्तमान इराक ) के खलीफा ने साहस करके कई बार अपनी विशाल सेनाएं भारत पर आक्रमण के लिए भेजी परन्तु हर बार उन्होंने मुह की खायी और उन्हें पीठ दिखा कर भागना पड़ा| स्वमं अरब इतिहासकारों व् च्छ नामा के अनुसार छ (6) बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा | अब उन्होंने ये जान लिया कि सीधे युद्ध में भारत को जीतना टेढ़ी खीर है इसलिए उन्होंने छल का सहारा लिया और धीरे-२ भारत के सीमावर्ती क्षेत्र में अपने सैनिकों को व्यापारियौं के वेश में भेजना शुरू किया जिन्होंने भारत के सीमावर्ती राज्य सिंध की बहुसंख्यक जनसँख्या बोध्धों तथा कुछ देशद्रोही व् विश्वासघाती सामंतो को अपने जाल में फसाया तथा उनके द्वारा सिंध की सुरक्षा ,रणनीति व् दुर्ग सम्बन्धी गोपनीय जानकारियां प्राप्त की तथा अपने सैनिकों को धोखे से सिंध के सेना ने भी प्रवेश दिलवा दिया ताकि समय पर उनका उपयोग किया जा सके|

और अब जब सभी तैयारियां हो चुकी थी सन 712 इसवी में हज्जाज के खलीफा अल - हज्जाज - इब्न - युसूफ - अल हक़फी ने अपने भतीजे मुहम्मद - इब्न - कासिम की कमान में अरब फौजों को सातवीं बार सिंध पर हमला करने के लिए भेजा |उस समय सिंध पर महाराजा दाहिर सेन का शासन था जो कि वीरता ,साहस और न्यायप्रियता में अपना सानी नहीं रखते थे| महाराजा दाहिर सेन छ (6) बार उन अरब फौजों को करारी हार दे चुके थे जिन्होंने कुछ ही दशकों में फारस,मिस्र, जोर्डन, स्पेन व् सीरया जैसे शक्तिशाली देशों को निस्तेनाबुद कर दिया था |

महाराज दाहिर सेन स्वमं युद्ध में भाग लेते थे व् सेनाओं का संचालान करते थे | 712 इसवी में मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर हमला कर दिया और उनकी योजना अनुसार बोधों ने विदेशी मलेच्छों का साथ दिया परन्तु फिर भी सिंध की सेनाओं ने अरबो को मुहतोड़ जवाब दिया और एक समय ऐसा आया की अरब सेनाएं पीठ दिखा कर भागने ही वाली थी कि तभी महाराज दाहिर की सेना में छुपे हुए अरबो ने भी सिंध की सेना पर हमला कर दिया जिससे राजा दाहिर की सेना में अफरातफरी मचगई और वे अपने ही सैनिकों को मारने लगे इसी समय कुछ देशद्रोहियों ने देवल दुर्ग का मुख्य द्वार खोल दिया जिससे अरब सेनाओं का उत्साह वर्धन हुआ और तभी दुर्भाग्य वश एक तीर, हाथी पर सवार राजा दाहिर के गले में जा लगा जिससे वे हाथी से गिर पड़े व् वीर गति को प्राप्त हुए|

राजा दाहिर को मृत देख सिंध की सेनाओं का मनोबल टूट गया और सारी सेना हतोत्साहित हो गयी तथा लड़ते -लड़ते मरी गयी | छल से प्राप्त विजय के उन्माद में अरब सेनाएं सिंध की राजधानी देवल में प्रवेश कर गयी और उन्होंने सिंध की निर्दोष जनसाधारण का जमकर कत्ले आम किया तथ्यों के अनुसार अरब सेनाओं में लगभग सभी मंदिरों और बोध विहारों को नष्ट कर दिया और बोध मठों के उन सभी हजारों निहत्थे बोधों को गाजर-मुली की तरह काट दिया जिन्होंने उनका साथ दिया था | पूरा का पूरा नगर जला दिया गया सारी सम्पति लूट कर इराक भिजवा दी गयी हजारों महिलाओं का शील भंग किया गया अधिकतर पुरुषों ,बच्चों व् वृद्धों का वध कर दिया गया या बलात धर्मपरिवर्तन करा कर मुसलमान बना दिया हजारों हिन्दू और बोध किशोरों और कन्याओं को गुलाम बनाकर खलीफा के पास हज्जाज (इराक) भेज दिया गया|

मजहब के नाम पर जो बुरे से बुरा वो कर सकते थे उन्होंने वो किया | जल्द ही उन्होंने सिंध के निकटवर्ती राज्यों बलूचिस्तान ,मुल्तान और पंजाब के कुछ भाग को भी जीत लिया और वहां भी वैभत्स्य का नंगा नाच किया | तत्पश्चात कासिम ने इन विजित राज्यों में अरब की कानून वयवस्था (शरिया) को लागु किया सभी गैर मुसलमानों पर जजिया लगाया गया ,उनके संतान उत्पन्न करने पर रोक लगा दी गयी ,हजारों की संख्या में लोगो को जबरदस्ती मुसलमान बनाया गया और जो मुसलमान नहीं बना या तो उसका वध कर दिया गया या उसे परिवार सहित गुलाम बना करा इराक भेज दिया गया | तक्षशिला विश्वविद्यालय को धवस्त कर दिया गया| तथा ये कानून बनाया गया कि अरब का कोई भी व्यापारी हिंदुस्तान आते वक़्त किसी भी हिन्दू घर में 3 दिन रुक सकता है और हर प्रकार की सेवा ग्रहण कर सकता है (हर प्रकार की सेवा से तात्पर्य तो आप समझ ही गए होंगे )|

1300 साल पहले भारत की सीमाएं पश्चिम में फारस (वर्तमान इरान) को और पूर्व में कम्बोडिया को छूती थी पर आज वे सिमट के रह गयी हैं| इस्लाम के आगमन से पूर्व भारत का लोहा पूरा विश्व मानता था परन्तु आज भारतीय कहलाने पर शर्म का अनुभव होता है | 1300 साल पहले ज्ञान - विज्ञानं,कला,साहित्य, चिकित्सा, आध्यात्म, दर्शन संस्कृति आदि के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु कहलाता था पर आज हम खुद को विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ अनुभव करते हैं | सैकड़ों सालों से हम अपने ही देश में शरणार्थियों की तरह रह रहे हैं अपने ही घर ने किरायदारों की तरह रह रहे हैं |आज 1300 साल बाद भी हम उसी जगह खड़े है जहाँ 1300 साल पहले 712 में खड़े थे आज भी मुस्लिम आक्रान्ता हमारे देश में मनमानी कर रहे हैं और आज भी गद्दारों और देशद्रोहियों की भारत में कोई कमी नहीं है | पिछले 1300 सालों में मुसलमानों के अनगिनत आक्रमणों का सामना इस भारत भूमि ने किया है जिसमे इस भूमि के अनगिनित बेटों ने अपने प्राणों की आहुति दी है अनगिनित बेटियों ने जौहर किया अनगिनित महिलाओं का शील हरण हुआ अनगिनित दुधमुहे बच्चों को भालों की नोक से छेदा गया |अत्याचार और व्यभिचार का ऐसा नंगा नाच मानवता ने इस्लाम के आगमन से पूर्व कभी नहीं देखा था |और ये अनवरत आज तक चल रहा है |

तो नव वर्ष 2012 के अवसर पर पिछले 1300 सालो के नफे - नुकसान का हिसाब कर लीजिये और समीक्षा करिए के गलती कहाँ हो रही है और इसका क्या समाधान है |

http://hinduexistence.wordpress.com/category/jihad-in-india/


(पवन शर्मा जी के माध्यम से )

Thursday, January 19, 2012

जब भारत माँ हुई लज्जित - कश्मीरी हिंदुओं के निर्वासन की बरसी आज



१९ जनवरी १९९० – ये वही काली तारीख है जब लाखों कश्मीरी हिंदुओं को अपनी धरती, अपना घर हमेशा के लिए छोड़ कर अपने ही देश में शरणार्थी होना पड़ा | वे आज भी शरणार्थी हैं | उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर करने वाले भी कहने को भारत के ही नागरिक थे, और आज भी हैं | उन कश्मीरी इस्लामिक आतंकवादियों को वोट डालने का अधिकार भी है, पर इन हिंदू शरणार्थियों को वो भी नहीं |

१९९० के आते आते फारूख अब्दुल्ला की सरकार आत्म-समर्पण कर चुकी थी | हिजबुल मुजाहिदीन ने ४ जनवरी १९९० को प्रेस नोट जारी किया जिसे कश्मीर के उर्दू समाचारपत्रों आफताब और अल सफा ने छापा | प्रेस नोट में हिंदुओं को कश्मीर छोड़ कर जाने का आदेश दिया गया था | कश्मीरी हिंदुओं की खुले आम हत्याएँ शुरू हो गयी | कश्मीर की मस्जिदों के लाउडस्पीकर जो अब तक केवल अल्लाह-ओ-अकबर के स्वर छेड़ते थे, अब भारत की ही धरती पर हिंदुओं को चीख चीख कहने लगे कि कश्मीर छोड़ कर चले जाओ और अपनी बहू बेटियाँ हमारे लिए छोड़ जाओ | "कश्मीर में रहना है तो अल्लाह-अकबर कहना है", "असि गाची पाकिस्तान, बताओ रोअस ते बतानेव सन" (हमें पाकिस्तान चाहिए, हिंदू स्त्रियों के साथ, लेकिन पुरुष नहीं"), ये नारे मस्जिदों से लगाये जाने वाले कुछ नारों में से थे |

दीवारों पर पोस्टर लगे हुए थे कि सभी कश्मीर में इस्लामी वेश भूषा पहनें, सिनेमा पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया | कश्मीरी हिंदुओं की दुकानें, मकान और व्यापारिक प्रतिष्ठान चिन्हित कर दिए गए | यहाँ तक कि लोगों की घड़ियों का समय भी भारतीय समय से बदल कर पाकिस्तानी समय पर करने को उन्हें विवश किया गया | २४ घंटे में कश्मीर छोड़ दो या फिर मारे जाओ – काफिरों को क़त्ल करो का सन्देश कश्मीर में गूँज रहा था | इस्लामिक दमन का एक वीभत्स चेहरा जिसे भारत सदियों तक झेलने के बाद भी मिल-जुल कर रहने के लिए भुला चुका था, वो एक बार फिर अपने सामने था |

आज कश्मीर घाटी में हिंदू नहीं हैं | उनके शरणार्थी शिविर जम्मू और दिल्ली में आज भी हैं | २२ साल से वे वहाँ जीने को विवश हैं | कश्मीरी पंडितों की संख्या ३ लाख से ७ लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए | एक पूरी पीढ़ी बर्बाद हो गयी | कभी धनवान रहे ये हिंदू आज सामान्य आवश्यकताओं के मोहताज हैं | उनके मन में आज भी उस दिन की प्रतीक्षा है जब वे अपनी धरती पर वापस जा पाएंगे | उन्हें भगाने वाले गिलानी जैसे लोग आज भी जब चाहे दिल्ली आके कश्मीर पर भाषण देकर जाते हैं और उनके साथ अरूंधती रॉय जैसे भारत के तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी शान से बैठते हैं |

कश्यप ऋषि की धरती, भगवान शंकर की भूमि कश्मीर जहाँ कभी पांडवों की २८ पीढ़ियों ने राज्य किया था, वो कश्मीर जिसे आज भी भारत माँ का मुकुट कहा जाता है, वहाँ भारत के झंडा लेकर जाने पर सांसदों को पुलिस पकड़ लेती है और आम लोगों पर डंडे बरसाती है | ५०० साल पहले तक भी यही कश्मीर अपनी शिक्षा के लिए जाना जाता था | औरंगजेब का बड़ा भाई दारा शिकोह कश्मीर विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ने गया था | बाद में उसे औरंगजेब ने इस्लाम से निष्कासित करके भरे दरबार में उसे क़त्ल किया था | भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग और प्रतिनिधि रहे कश्मीर को आज अपना कहने में भी सेना की सहायता लेनी पड़ती है | “हिंदू घटा तो भारत बंटा” के 'तर्क’ की कोई काट उपलब्ध नहीं है | कश्मीर उसी का एक उदाहरण मात्र है |

मुस्लिम वोटों की भूखी तथाकथित सेकुलर पार्टियों और हिंदू संगठनों को पानी पी पी कर कोसने वाले मिशनरी स्कूलों से निकले अंग्रेजीदां पत्रकारों और समाचार चैनलों को उनकी याद भी नहीं आती | गुजरात दंगों में मरे साढ़े सात सौ मुस्लिमों के लिए जीनोसाईड जैसे शब्दों का प्रयोग करने वाले सेकुलर चिंतकों को अल्लाह के नाम पर क़त्ल किए गए दसियों हज़ार कश्मीरी हिंदुओं का ध्यान स्वप्न में भी नहीं आता | सरकार कहती है कि कश्मीरी हिंदू "स्वेच्छा से" कश्मीर छोड़ कर भागे | इस घटना को जनस्मृति से विस्मृत होने देने का षड़यंत्र भी रचा गया है | आज की पीढ़ी में कितने लोग उन विस्थापितों के दुःख को जानते हैं जो आज भी विस्थापित हैं | भोगने वाले भोग रहे हैं | जो जानते हैं, दुःख से उनकी छाती फटती है, और आँखें याद करके आंसुओं के समंदर में डूब जाती हैं और सर लज्जा से झुक जाता है | रामायण की देवी सीता को शरण देने वाली भारत की धरती से उसके अपने पुत्रों को भागना पड़ा | कवि हरि ओम पवार ने इस दशा का वर्णन करते हुए जो लिखा, वही प्रत्येक जानकार की मनोदशा का प्रतिबिम्ब है - "मन करता है फूल चढा दूँ लोकतंत्र की अर्थी पर, भारत के बेटे शरणार्थी हो गए अपनी धरती पर" |

(http://hindi.ibtl.in/news/exclusive/1853/article.ibtl के माध्यम से)